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14 Aug 2021 · 1 min read

शीर्षक : भीतरी संपदा

//भीतरी संपदा//

भाव भीतर हों यदि क्षमा के
बाहर क्षमा हो स्वतः परिलक्षित
प्रार्थना गर भीतर रहे
प्रार्थना हो बाहर भी
नफरत दिल में कहीं दबी हो
नफरत बाहर कटुता बन बरसे
भीतर प्यार हो बसा अगर तो
प्यार बाहर है उमड़े
सच यही है मत देना दोष
बाहर जो भी निकले
मत ठहराना दोषी उसे
भीतर छिपी संपदा
ये मन हैं सहेजे…..
(अब नीचे से ?ऊपर पढ़ें… )

© ® उषा शर्मा

Language: Hindi
1 Like · 2 Comments · 404 Views
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