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4 Oct 2020 · 1 min read

शिखरिणी छंद (“भारत वंदन”)

शिखरिणी छंद (“भारत वंदन”)

बड़ा ही प्यारा है, जगत भर में भारत मुझे।
सदा शोभा गाऊँ, पर हृदय की प्यास न बुझे।।
तुम्हारे गीतों को, मधुर सुर में गा मन भरूँ।
नवा माथा मेरा, चरण-रज माथे पर धरूँ।।

यहाँ गंगा गर्जे, हिमगिरि उठा मस्तक रखे।
अयोध्या काशी सी, वरद धरणी का रस चखे।।
यहाँ के जैसे हैं, सरित झरने कानन कहाँ।
बिताएँ सारे ही, सुखमय सदा जीवन यहाँ।।

दया की वीणा के, मुखरित हुये हैं स्वर जहाँ।
सभी विद्याओं में, अति पटु रहे हैं नर जहाँ।।
उसी की रक्षा में, तन मन लगा तत्पर रहूँ।
जरा भी बाधा हो, अगर इसमें तो हँस सहूँ।।

खुशी के दीपों की, जगमग यहाँ लौ नित जगे।
हमें प्राणों से भी, अधिक प्रिय ये भारत लगे।।
प्रतिज्ञा ये धारूँ, दुखित जन के मैं दुख हरूँ।
इन्हीं भावों को ले, ‘नमन’ तुम को अर्पित करूँ।।
=================

शिखरिणी (लक्षण छंद)

रखें छै वर्णों पे, यति “यमनसाभालग” रचें।
चतुष् पादा छंदा, सब ‘शिखरिणी’ का रस चखें।।

“यमनसाभालग” = यगण, मगण, नगण, सगण, भगण लघु गुरु ( कुल 17 वर्ण)

122 222, 111 112 211 12

(शिव महिम्न श्लोक इसी छंद में है।)
****************

बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
तिनसुकिया
08-01-2019

Language: Hindi
1 Comment · 1304 Views
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