“शिक्षक”
“शिक्षक”
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हम शिक्षक हैं ,
बच्चों के हम ही ,
असली रक्षक हैं।
हममें होता ज्ञान,
लेकिन नहीं होता,
कोई अभिमान।
बच्चें आशा रखते,
ज्ञान पाने की हमसे,
प्रत्याशा रखते।
हम आते बच्चों के,
हर पल काम,
हमसे इनके पूरे होते,
सब अरमान।
हममें हर समस्या का,
हल होता है,
त्याग की भावना,
प्रबल होता है।
ज्ञान के बदले धन का,
हमें लालच नहीं,
किसी भी वक़्त,
हममें आलस नहीं।
बच्चे, बूढ़े और जवान,
हमे सब करते प्रणाम,
देश के हर सिस्टम में,
आते हम ही काम।
हम जाति,धर्म का,
भेद करते नहीं,
औरों की तरह हम,
आपस में लड़ते नहीं।
समय का पालन करना,
शिक्षकों की पहचान है,
तभी हर जगह मिलता,
इनको सम्मान है।
दया इनका शस्त्र है,
बुद्धि इनका गहना,
हर संकट में इनके ,
विवेक का क्या कहना।
हम अगर बच्चों को,
सदा समझें अपना,
इनका पूरा हो जाए,
तब हर सपना।
ये बच्चें ही ‘राम’ हैं,
‘कर्ण’ हैं और हैं,’अर्जुन’,
बस शिक्षक कर दे दूर,
इनका हर दुर्गुण।
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धन्यवाद्
स्वरचित सह मौलिक
..✍️…पंकज “कर्ण”
………..कटिहार।।