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17 Aug 2021 · 1 min read

शिकारी और प्रेम

प्यासी हिरनी
वन वन को झूमै
अम्बु चाह में

धरा से नभ
तलक पसरता
घोर तम है

निर्विकार सी
आकृति बनाती जो
उड़ी रेत से

देख उसको
आतुर डालने को
शिकारी फंदा

फाँस पड़ी
ज्यों एक अनुपम
छबि प्रकटी

उत्तरीय को
सभाल बाहुँ पर
शनै लजाती

देख रूपसि
शिकारी भाल हुआ
अवनत था

कर प्रणाम
बोला मोहिनी कोन
इस वन में

नर आशा से
उत्पन्न मुग्धा मैं हूँ
आशा दायिनी

एंकात में मैं
निराशा हर प्रेम
राग रचती

Language: Hindi
76 Likes · 2 Comments · 331 Views
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