*मैं ऐसा देश बनाऊँगा*
“मैं ऐसा देश बनाऊँगा”
जहाँ प्रेम रहे और समता हो,
जहाँ हर मानव में ममता हो ,
बसती जन-जन मानवता हो।
मैं ऐसा वतन बनाऊँगा ।
मैं ऐसा देश बनाऊँगा।
जहाँ अमृत धारा वितरित हो,
जहाँ मीठी वाणी मुखरित हो।
और हर इक जन व्यवहारिक हो ।
मैं ऐसा राग सुनाऊँगा।
मैं ऐसा देश बनाऊँगा।
जहाँ वर्ग-भेद का नाम ना हो,
जहाँ जात-पाँत का काम ना हो।
अल्लाह विरोधी राम न हो,
मैं हर मन द्वेष मिटाऊँगा।
मैं ऐसा देश बनाऊँगा।
जहाँ हर-नर ईश्वर-अंश बने,
जहाँ अज़ान सुने तो राम जगे,
घंटार सुनकर अल्लाह उठे।
मैं ऐसा भाव जगाऊँगा।
मैं ऐसा देश बनाऊँगा ।
जहाँ ईद-तीज त्योहारों पर,
मानवता का बलिदान ना हो ।
जहाँ गाँव-शहर हर नगर नगर,
‘मयंक’ नारी अपमान न हो।
मैं ऐसा परिवेश बनाऊँगा ।
के.आर.परमाल ‘मयंक’