शायरी
हम अपनी आद्तों से न जाने कब तक बाज आएंगे
किसी की मर्जी हो के न हो हम आवाज़ उठाते जायेंगे।
हम अकेले वो नहीं जो इस दहर में दफ़नाये जायेंगे
चुप रहने वाले होठ भी तो किसी दिन पुकारे जायेंगे।
भूखे खो खाना मिले और प्यासे की मिटे जाए तृष्णा
मजलूमों को मिले आसरा, बेटियों को इज्जत का दागिना
इंकलाबी सुबह आए सारे धरती अंबर पर छा जाए
अपनी धुन में हम तो भईया बस ये गाना गाते जायेंगे
…सिद्धार्थ