Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
13 Dec 2016 · 4 min read

शाम का साया

शाम का साया

तेज दौड़ती हुई ट्रेन की खिड़की के पास बैठी हुई तक्षवी, उड़ती हुई लटो को संभालती घड़ी में टाइम देख रही थी । बस, अब आधा घंटा रहा होगा शीमला से ओर एक ट्रेन चैज करके आगे टेैन सहसागढ जा रही थी।उसके हसबैंड ७- ८ महीने पहले तबादला होने की वजह से यहाँ आये थे और वो बच्चों की स्कूल के बाद में टूर वगैरह का इंतजाम करके आज पहुँच रही थी। बारिश का समय था और एकदम धूंधला सा एटमॉस्फियर था।ट्रैन में थोड़े से पेसेंजर थे ।ट्रेन के टाइम में चैज होने कीवजहसे , १५ मिनिट के डिस्टेन्स पर ही गवर्नमेंट बँगला था तो,पहूंचकर फोन करुंगी सोचकर भूल गइ ।जल्दी से 2- 3 पेसेंन्जर सामान लेकर दरवाजे की आेर जाते हुऐ देख वो भी वोशरुम से फे्श होकर वापस अपनी सीटपर बैठ गइ।उतनेमें सामने कीसीटवाली औरत पूछनें लगी,
”आप सहसागढ जा रहे है।
‘हां,मेरे हसबैंड की यहाँ पोस्टींग हुई है और में 6 महीने बाद आ रही हूॅं।अभी 15- 20 मीनट में सहसागढ आ जायेगा’।’लेकीन आप को दिन में आना चाहिये ,शाम को ये इलाका अच्छा नहिं यहाॅं दो- तीन बार खराब हादसे हो चूके है और गांव में आत्मावगैरह की अफवाहें भी फैली हुई है”
मैं तो इन सब बातों में बिलकुल ही नहीं मानती ,विझान इतना आगे बढ़ चूका है ओर इस टेकनोलोजी के जमाने में अैसा कुछ संभव ही नहिं मै तो काफी अंजान जगाओ पर रही हूं ,इनका काम ही एेसा है के मुज्ञे बहोत बार अकेले रहेना पडता है।अब तो काफी हिम्मत आ गइॅं है।
‘हां ,लेकिन ये नेटवर्क का भी कोइ ठिकाना नहीं यहाँ ,हमारा गांव नजदीक में ही है सब लोग बातें करते हे वो सुनते रहेते है.’
‘।’हां,मेरे हसबैंड भी किसी हादसे के बारे में बता रहे थे ,काफी सुमसाम इलाका है ,लेकिन गवर्नमेंट के हाउस है और सब सुविधाएँ भी है ।वो औरत ये सुनकर चुप हो गइॅं ओर तक्षवी ने फोन लगाकर उद्देश से बात करनी चाही लेकिन डिस्टेबन्स कीवजह से बराबर कुछ सुनाइॅं नहीं दे रहा था। स्टेशनपर ट्रेन के रुकते ही धीमी सी बारिश में खड़ी होकर सामने खडे हुए कुली को आवाज़ दी ।ओर दो पेसेंजर उतरे थे वो रेल की पटरी क्रास करके सामने की और चले गए ।अपने हसबैंड उद्देश कोफोन लगाया लेकिन नेटवर्क नहीं था। बारिश तेज़ होने लगी थी ।अपना छाता निकालकर धीरे धीरे स्टेशन के बाहर आकर खड़ी रही ,घने पेड़ों से लिपटा हुआ पूरा इलाका और छोटा सा स्टेशन- ऑफिस कोहरे मे आधा ढक गया था ।कुली वापस अंदर की और चला गया ।बाहर दूर एक -दो खाली कार पड़ी हुई थी ,, एक दो स्कूटर वगैरह ,एक टैक्सी भी थी लेकिन पास जाकर देखा तो ड्राइवर का कोई पता नहीं था ।पता नहीं क्यों ऐसे तो कई बार काफी जगाओ पर रहे थे लेकिन ऐसे हवा में डरावनी सी चुप्पी कभी महसूस नहीं की थी ।चनार के पेड़ों की सांय -सांय और बारिश की बूंदे भी जैसे तूफान के ओले की तरहा हाथो पर चुभ रही थी ।एक बैग और हेंडलगेज लेते हुए काफी मुश्किल से सड़क के पास आकर खड़ी रही जहां से आता हुआ रास्तासाफ दिखाई रहा था । उतने में दूर से एक कार आती हुई दिखी ।हाश ,मेरा तो जी गभरा रहा था, थोड़े समय पहले यहाँ पर एक कपल के साथ हुए हादसे की वजह से इस इलाके में शाम को चहलपहल काफी कम हो जाती थी ,उद्देश की कही हुई बात याद आते वापस तक्षवी के रोंगटे खड़े हो गए और इतनी ठण्ड में भी रूमाल से मुंह पर से पसीना पोंछने लगी । उतने में कार पास आकर वापस टर्न लगाकर नज़दीक में खड़ी हो गयी ,ऑटोलॉक से पीछे का दरवाज़ा खुला और ‘जल्दी अंदर बैठो ‘उद्देशकी आवाज़ सुनकर जल्दी से अपना सामान सीटपर रखकर बैठ गयी ।ड्राइवींग सीट और पीछे की सीट के बीच मे कांच था और ड्राइविंग सीट के बाजू मे बड़ा सा बक्सा रखा हुआ था ।काफी भीग चुकी थी और रेडियो पर टूटी हुई आवाज़ और काफी डिस्टेबंसके साथ न्यूज़ आ रहे थे दुपट्टे से पोंछती रही और जोर से पूछा
“फोन क्यों नहीं लग रहा था ?”
गभराहटमें एकदम से बेतुके सवाल करने लगी।लेकिन …’ क्या ?इतनां ही सुनाई दिया आगे खाली नीले रंगका ओवरकोट और ग्रे हेट दिखाई दे रहा था उद्देश का ।फिर चुपचाप बैठी रही ।बीस पच्चीस मीनीट का रास्ता था।वीन्डो पर जोर की बारिश कीवजह से कुछ दीखाइ नहीं दे रहा था। उतने में दूर से थोड़े हाउस दिखाई दिए और कार तेजी से मुड़ती हुई पोर्च में खड़ी रही।तक्षवी ऊतरकर खडी रही ,लेकिन कार वापस धीरे से गेट की और जाने लगी।अंदर से बाय करता हुआ हाथ देखकर उसने भी बाय किया ।ओर उद्देश कहीं किसी काम से वापस जाकर आ रहा हे सोच जल्दी से हेंडलगेज लेकर सामने के ऊँचे स्टेप्स पर चढ़ती हुई दरवाजे के पास खड़ी रही और डोरबेल बजाई ।तुरंत अंदर से सर्वेन्ट ने दरवाजा खोला ।
‘अरे, मैडम आप आ गई?’
‘हाॅं काका ,मेरा सामान ले लीजिये बाहर से ‘कहकर अंदर आई और सर्वेन्ट कहने लगा,
‘सुब्हे की गाड़ी से ही आना चाहिए ,यहाँ पर जिस औरत को बलात्कार कर के उसके हसबैंड को भी मार डाला था उसकी आत्मा घूमती है,लेकिन अच्छी आत्मा है ,सबको बचाता है ‘और एकदम से तक्षवी हस दी।
‘क्या आप भी काका ?’कहकर डाइनिंग की और जाने लगी और सामने से उदेश नीला कोट और गे हेट पहने हुए हाथ में कार की चाबी घुमाते हुए रूम से निकला ।
‘तुम इतनी जल्दी आ गयी ?में अभी तुम्हें लेने ही निकलने वाला था टैक्सी जल्दी से मिलती नहीं है, तुम लकी हो ‘
तो तुम्हारी नेवी ब्लू जीप मे ही तो आई हूॅं ,स्टेशन से साथ में तो आये अभी’
‘क्या बोले जा रही हो तुम्हारी तबियत तो ठीक है ?,पुरे टाउन में अपनी एक ही नीली जीप हे ,अपनी गाड़ी तो अभी अपने गराज में हे और फोन आया तुम्हारा के लेट हे तो में अभी निकल ही रहा था
‘ माई गोड तो वो कौन था ?कहीं वो ……. और….. तक्षवी बेहोश होकर गिर पड़ी ।
– मनीषा जोबन देसाई

Language: Hindi
1 Comment · 438 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
मैं
मैं "आदित्य" सुबह की धूप लेकर चल रहा हूं।
Dr. ADITYA BHARTI
■ मुद्दा / पूछे जनता जनार्दन...!!
■ मुद्दा / पूछे जनता जनार्दन...!!
*Author प्रणय प्रभात*
* जिन्दगी में *
* जिन्दगी में *
surenderpal vaidya
3200.*पूर्णिका*
3200.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
मन मंथन कर ले एकांत पहर में
मन मंथन कर ले एकांत पहर में
Neelam Sharma
ख़्वाब
ख़्वाब
Monika Verma
अगर आप रिश्ते
अगर आप रिश्ते
Dr fauzia Naseem shad
भोर पुरानी हो गई
भोर पुरानी हो गई
आर एस आघात
कविता तो कैमरे से भी की जाती है, पर विरले छायाकार ही यह हुनर
कविता तो कैमरे से भी की जाती है, पर विरले छायाकार ही यह हुनर
ख़ान इशरत परवेज़
तुम अपना भी  जरा ढंग देखो
तुम अपना भी जरा ढंग देखो
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
In the end
In the end
Vandana maurya
एक शख्स
एक शख्स
Pratibha Pandey
करती पुकार वसुंधरा.....
करती पुकार वसुंधरा.....
Kavita Chouhan
मुड़े पन्नों वाली किताब
मुड़े पन्नों वाली किताब
Surinder blackpen
राखी धागों का त्यौहार
राखी धागों का त्यौहार
Mukesh Kumar Sonkar
खुशियाँ
खुशियाँ
Dr Shelly Jaggi
Drapetomania
Drapetomania
Vedha Singh
आसमाँ के अनगिनत सितारों मे टिमटिमाना नहीं है मुझे,
आसमाँ के अनगिनत सितारों मे टिमटिमाना नहीं है मुझे,
Vaishnavi Gupta (Vaishu)
कोई कैसे ही कह दे की आजा़द हूं मैं,
कोई कैसे ही कह दे की आजा़द हूं मैं,
manjula chauhan
बढ़ता कदम बढ़ाता भारत
बढ़ता कदम बढ़ाता भारत
AMRESH KUMAR VERMA
*शातिर चोर (हास्य कुंडलिया)*
*शातिर चोर (हास्य कुंडलिया)*
Ravi Prakash
भारतवर्ष स्वराष्ट्र पूर्ण भूमंडल का उजियारा है
भारतवर्ष स्वराष्ट्र पूर्ण भूमंडल का उजियारा है
Pt. Brajesh Kumar Nayak
मातर मड़ई भाई दूज
मातर मड़ई भाई दूज
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
ज़िंदा हूं
ज़िंदा हूं
Sanjay ' शून्य'
मेरे चेहरे पर मुफलिसी का इस्तेहार लगा है,
मेरे चेहरे पर मुफलिसी का इस्तेहार लगा है,
Lokesh Singh
राखी (कुण्डलिया)
राखी (कुण्डलिया)
नाथ सोनांचली
एक बार बोल क्यों नहीं
एक बार बोल क्यों नहीं
goutam shaw
अधिकांश होते हैं गुमराह
अधिकांश होते हैं गुमराह
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
💐प्रेम कौतुक-217💐
💐प्रेम कौतुक-217💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
बाल दिवस पर मेरी कविता
बाल दिवस पर मेरी कविता
Tarun Singh Pawar
Loading...