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12 May 2019 · 1 min read

शाम-ए-गजल

शाम-ए-गजल

रात के ख्वाब में करूँ बसर तन्हा,
अब मैं जाऊँ तो जाऊँ किधर तन्हा ।

छोटी-छोटी सी उंगलियां उसकी,
बुनते हैं ख्वाब एक नजर तनहा।

दिन गुजर गया है भरी महफिल में,
रह गया मैं अकेला शज़र तन्हा।

जब थे तुम साथ में खुशनुमा नजारा था,
अब मैं कैसे मुस्कुराऊं सफर तन्हा।

लगा के काफूर आग दिया है सब ने,
लौटूँ में कैसे तुम बिन डगर तन्हा।

रो भी पता नहीं तुम्हारी कसमों से,
अब मैं किसके गले लगूँ फफक तन्हा।

– Rishikant Rao Shikhare

Date:- 10-05-2019

1 Like · 264 Views
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