शादी के पहले और अब..!
(हास्य – कविता)
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पहले थी तुम लाल गुलाब एक
अब तुम कांटे की डाली,
आज मुझे कालीख सी लगती
पहले थी तुम सुर्ख लाली।।१।।
जब देखा था पहले तुमको
तब थी प्रेम भरी पांती,
आज क्यों लगती भैस सरीखी
फूटी आंख नहीं भाती।।२।।
पहले थी तुम मोर पंख सी
आज कठोर कागा वाणी,
पहले शीतल मधुर सी झरना
अब समुद्री खरा पानी।।३।।
जब देखा थी मिष्टी मलाई
आज नून की तूम गोली,
पहले स्वर तुम मधुर संगीत की
आज हो तुम कड़वी बोली।।४।।
पहले तुम थी ताजमहल सी
आज गरीब की एक खोली,
थी पहले तू कुबेर सरीखी
आज फकीर की एक झोली।।५।।
जब देखा था लगी थी भोली
आज दोनाली की गोली,
तब बातों से घोलती थी मिश्री
आज दागती हो गोली।।६।।
पहले थी इजहार प्रेम की
आज तूं देती है गाली,
पहले थी तुम कली फूल की
आज हो फूलो की माली।।७।।
जब देखा तुझे हीर लगी थी
आज तूं बच्चों की आई,
तब थी सीढी इस जीवन की
आज क्यों लगती हो खाई।।८।।
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पं.संजीव शुक्ल “सचिन”