शहर में हर कोई अकेला
मेरे शहर में
हर तरफ फैला उजाला है
अँधेरा खो गया है
सुनसान राहों से
दिलों में पसरा अँधेरा है ।
भीड़ है बाजार में
रास्तों में भी ट्रैफिक जाम
यहाँ लोग है इतने
फिर भी हर कोई अकेला है ।
हंस रहे जो
हंसी भी अजनबी सी है
रो रहे जो अकेले
वही इंसानी हकीकत है ।
पैसे गिन रहे हैं दिन
दिलों पर पैर रखकर
तिजोरी भी भरी है
फिर भी हर कोई गरीब और भूखा है
मेरे शहर में
हर दिल मतलबी सा है ।
लफ्ज़ मायूस हैं
कान बैचेन है
कोई आवाज़ दे मुझको
मोहब्बत से
यहाँ इतना शोरशराबा सा है ।
घरों के अम्बार है
जमीन और आसमाँ में
फिर भी सड़कों पर
जमघट जुस्तजू का है
बड़ी बड़ी गाड़ियां है यहाँ
उनमे आदमी बैठा अकेला है ।
मेरे शहर में फैला
हर तरफ उजाला है ।
लबों पर तारीफ हैं
महफिलें है जवान
हर तरफ मौज मस्ती है
शराब में इतना कम नशा सा है
बेबफ़ाई है दिलों में
उसमें ज्यादा नशा सा है ।
मेरे शहर में हर तरफ
फैला उजाला है
अँधेरा खो गया है
सुनसान राहो से
दिलों में पसरा अँधेरा है ।