शहर आक्रोश में है मौत पर मेरे
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शहर आक्रोश में है मौत पर मेरे।
पर,नहीं बेहोश होता मौत पर मेरे।
चल पड़ा है फिर,सेंक कर रोटियाँ।
खरीदेगा फिर,मुर्दा हुई जो बोटियाँ।
रसास्वादन रसों में नहीं,है राजनीति में।
खोट केवल ढूँढना है तुम्हारे नीति में।
बदलने को उठा, विरोध में मारा गया मैं।
तुम्हीं ने थे दिये नारे तुम्हीं से मारा गया मैं।
आज मैं कल तुम मरोगे रगड़ कर रेड़ियाँ।
तुम्हारे पैर में अज्ञता की पड़ी है बेड़ियाँ।
कल्याण की हर ‘बाँट-बन्दर’ सिर उठाए।
कुछ बता? क्यों देखकर तुम मुस्कुराए।
यह तुला तेरे ही हाथों से छिना था।
जानते तुम इस तुला को झुनझना सा!
सत्य मेरा है वचन,झूठ,सतरंगी इंद्रधनुष है।
छू न पाया आजतक जिसको मनुष्य है।
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