शतरंज सी है जिन्दगी
❆ शतरंज सी है ज़िन्दगी
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जिन्दगी शतरंज जैसी बन गई
आज यह शह – मात में ही ढल गई,
हम बने प्यादे सभी बिसात के
जिन्दगी बस दांव अपना चल गई।
सब बने राजा कभी रानी यहाँ
चाल उल्टी जिन्दगी अब चल गई,
हाथी घोड़े ढूंढते हैं रास्ते
जिंन्दगी यह ऊँट सी ही बन गई।
हाथ सबकुछ है यहाँ वजीर के
चाल जैसी जो चला ये ढल गई,
सोच कर ही खेलना है जिन्दगी
वर्ना समझो मात तुमको मिल गई।।
सब अकेले ही खड़े इस राह में
चाल जैसी जो चला है मिल गई,
जिन्दगी शतरंज या कुछ और है
बात मन में चुभती यह रह गई।
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✍✍पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण …बिहार