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2 Jan 2018 · 1 min read

वक़्त था खुद को आजमाने का

वक़्त था खुद को आजमाने का
वादा करना था भूल जाने का

हम ये समझे उन्हें मुहब्बत है
उनका था शौक गुनगुनाने का

मानते जब हमें हो तुम अपना
फिर सबब क्या यूँ हिचकिचाने का

खाइयाँ और भी हुईं गहरी
फायदा क्या हुआ निभाने का

दिखती बेचैनियाँ हैं आँखों मे
कर न नाटक तू मुस्कुराने का

हमको रोका नहीं किसी ने भी
चाहिए पर बहाना आने का

‘अर्चना’ बात अपनी कहनी थी
था इरादा न दिल दुखाने का

02-01-2018
डॉ अर्चना गुप्ता

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