वक़्त के सँग ही कदम अपने मिलाते रह गये
वक़्त के सँग ही कदम अपने मिलाते रह गये
कारवां बस यादों का हम तो बनाते रह गए
देखते ही देखते लो साँझ बेला आ गई
भार दिल से सपनों का हम तो उठाते रह गये
रख सके माँ बाप को तो साथ में अपने नहीं
शान ऊँचे महलों की सबको दिखाते रह गये
काम छोड़े, फ़र्ज़ भूले, लोग कुछ ऐसे यहां
लाभ जो सत्संग सुनने का उठाते रह गए
की यहां बेजोड़ मेहनत ,फल मिला उतना नहीं
हार को किस्मत समझ बस मुस्कुराते रह गए
आपदाओं ने निगल अपने लिए कितने यहाँ
और हम बेबस खड़े आँसूं बहाते रह गए
खो गए रंगीनियों में दूसरों की होड़ में
वक़्त अपना कीमती ही बस गवाते रह गए
फूल ही चुनते रहे हम शूल को करके अलग
‘अर्चना ‘ यूँ हार खुशियों का बनाते रह गए
डॉ अर्चना गुप्ता
2-09-2017