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12 Jan 2018 · 1 min read

व्याकुलता

व्याकुलता
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औचित्य क्या मेरे जीवन का
नही समझ में आया है
इतराते फिरते चकाचौंध में
पाश्चात्य रंग ने भरमाया है ।

मन में #व्याकुलता है, कैसे धीर धरू
रुदन कर रही धरती माँ ,कैसे पीर हरू
तन मन रंग डाला अंग्रेजी ने
यह मन मस्तिष्क पर छाया है ।……

गिरफ्त हुई मर्यादा संस्कृति
धूलधूसरित तन मन है
हम भूले गरिमा भारत भूमि की
यह कितनी सुंदर कितनी पावन है
धर रूप राम का ओर कृष्ण का
ईश्वर धरती पर आया है ।…….

कुछ चाटुकारो के चक्कर में
घोघावसंत हम बन बैठे हैं
बेनजीर भारत भूमि को
कुछ दुश्मन देख के ऐठे है
किंकर्तव्यबिमूढ सा देख रहा में
नहीं कुछ भी समझ में आया है।

राघव दुबे
इटावा(उ०प्र०)
8439401034

Language: Hindi
554 Views
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