व्यथा (कविता)
मेरे ह्रदय में उठता,
प्रेम का अथाह आवेगें।
जैसे सागर में उठती,
चंचल मदमस्त लहरें।
उठती हुई यह लहरें,
चाँद को छूने का असफल,
प्रयास करती हैं।
परन्तु फिर ना छु पाने के,
दुःख से पुन: अंतर्मन से,
विवश हो कर लौट जाती हैं।
गहन गंभीरता की चादर ओढे,
सागर में समा जाती हैं।
इस गंभीरता में छुपी है विवशता।
और इस विवशता में छुपी ही,
मेरे अंतर्मन की व्यथा।