व्यक्तिव
व्यक्तिव
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वर्तमान में
हमारा व्यक्तिव भी
आधुनिकता की भेंट
चढ़ता जा रहा है।
हमारी पहचान भी
हमारे कपड़ो,
हमारी सम्पन्नता से हो रहा है।
हमारे आचरण हमारे विचारों का
मोल घट गया है।
भ्रष्ट,अनाचार, अत्याचार
अपराधियों का अब
व्यक्तिव भाव खा रहा है।
विचार धक्के खा रहा है,
सदाचार मर रहा है,
व्यक्तिव का पैमाना
रसूखदारों के जूतों थले
रौंदा जा रहा है।
#सुधीर श्रीवास्तव