व्यंग:- चम्मच तेरी लीला अपरंपार है….
चम्मच तेरी लीला अपरंपार है
अपने आकाओं का तुमसे
होता अब उद्धार है।।
चम्मच तेरी लीला अपरंपार है…
जिसके पास हो चमचों की
जितनी भी भरमार है
उसकी कदर बढ़े उतनी ही
उतना बड़ा संसार है
चम्मच तेरी लीला अपरंपार है
चमचों से चलते गोरखधंधे
और काला व्यापार है
भ्रष्टाचार है तेरे सुपुर्द
आखिर तू ही मूलाधार है
चम्मच तेरी लीला अपरंपार है…
मिले मान-सम्मान तुम ही से
तेरा ही उपकार है
मिले अनादर आका को जब
करवाता तूँ सत्कार है
चम्मच तेरी लीला अपरंपार है…
नहीं चमत्कृत जग में आका
तेरा ही तो चमत्कार है
तुमसे ही मिलते आका को
बड़े बड़े उपहार हैं
चम्मच तेरी लीला अपरंपार है
हाथ हुये गंधे आका के
चम्मच से भोजन पार है
सभी अपच को सुपच बना दे
गर चम्मच वफादार है
चम्मच तेरी महिमा अपरंपार है…
खाओ जितना खा सको
चम्मच पहरेदार है
भागो या घुस जाओ घर में
अंधा चौकीदार है
चम्मच तेरी लीला अपरंपार है…
जिस बर्तन में तुम हो रहते
उस पर तेरा ही अधिकार है
रीतेगा बर्तन एक दिन वो
आखिर चम्मच खातेदार है
चम्मच तेरी लीला अपरंपार है…
✍? अरविंद राजपूत ‘कल्प’