वो रिमझिम सी बारिश
ऐ बारिश का मौसम लगे मुझको अपना।
वो रिमझिम सी बारिश हो बाहों में सजना।।
मिलन हो गगन और धरा का ख़ुशी से।
हो बादल गर्जना या बिजली चमकना।।
वो रिमझिम सी बारिश…
वो बचपन की बारिश से मुझको मिला दो।
वो कागज की कश्ती बनाकर बहा दो।
वो कीचड़ में भिड़कर मुझे फिर नहा दो।
वो झिरिया का पानी मुझे फ़िर पिलादो।।
वो सावन महीना कलाई पे राखी।
कजलियांँ का लेना गले मिल के रहना।
वो रिमझिम सी बारिश…
वो सावन के झूले नदी के हिडोले।
हो लंबी सी बारिश जले जब न चूल्हे।।
वो भादों की बदली वो कान्हा की मटकी।
वो मक्खन मैं लूटूँ जो राधा को खटकी।।
वो राधा मुझे जान से जो है प्यारी
वो उसका सहमना इशारों में कहना।
वो रिमझिम सी बारिश…
जुदाई में उसकी ए आँसू का झरना।
हो सावन की बारिश का जैंसे बरसना।।
मुझे ‘कल्प’ राधा से अब तो मिला दो।
बिना उसके जिंदा मुझे अब न रहना।
वो रिमझिम सी बारिश…
. ✍?अरविंद राजपूत ‘कल्प’