वो चली आज फिर सँवर कर
वो चली आज फिर सँवर कर, ले उम्मीदें बटोरे,
मगन है अपनी ही धुन में,आशियाँ मिल ही जायेगा ।
खुश हैं उसके घरवाले ,
पड़ौसी भी उत्सुक हैं,
आज नहीं तो कल मिल ही जाएगी , मंजिल उसे ।।
चमन में उसकी ही चमक है ,
फिजाँ को सँवारा है उसने,
है खुशनुमा माहौल -ए-फिजाँ ,
सबका ख़्याल भी रखती है ।
वो चली आज फिर सँवर कर , ले उम्मीदें बटोरे ।
मगन है अपनी ही धुन में , आशियाँ मिल ही जायेगा ।।
कई कदम आगे है आई,
अभी उसे जाना है बहु दूर ,
रही है वो खुद से बेपरवाह ,
रोक न पाई उसको कठिनाइयाँ ।
वो चलती है होकर मनमस्त ,
क्या कोई रोक भी पायेगा ।
वो चली आज फिर सँवर कर, ले उम्मीदें बटोरे ।
मगन है अपनी ही धुन में, आशियाँ मिल ही जायेगा ।।
वक्त का क्या उसे मालूम,
कहाँ कब कैसा मोड़ आएगा ।
मिलेगा उसको हमराही ,
राह में छोड़े हैं सब अपने ,
मालूम नहीं उसको दर्द वो कितना उसे देगा ।
तोड़ा है आज तूने रिश्ता,
तोड़कर ये भी जाएगा ।
वो चली आज फिर सँवर कर, ले उम्मीदें बटोरे,
मगन है अपनी ही धुन में , आशियाँ मिल ही जायेगा ।।
इक पहर ऐसा है गुजरा ,
चमन में फैला अँधियारा ,
इख़लास ने जो उसको ,
अपने कदा से ठुकराया ।
है आगोश में ये आलम, कोई समझा दो आलम को,
आब ए चश्म न आयेंगे, मुलजिम न उनको समझा जाएगा ।
वो चली आज फिर सँवर कर, ले उम्मीदें बटोरे,
मगन है अपनी ही धुन में, आशियाँ मिल ही जायेगा ।।
ख़्वाब न अब उसको आते हैं,
न शिक़वे हैं यूँ गुलशन से ,
निशाँ न है जमीं पे उसका ,
असर अहजान ही पायेगा ।
वो चली आज फिर सँवर कर, ले उम्मीदें बटोरे ,
मगन है अपनी ही धुन में, आशियाँ मिल ही जायेगा ।।
(C) आर एस “आघात” (C)