वो खुदगर्ज निकल गये
वो खुदगर्ज निकल गये
उनकी गलियों में घूमे हम हजार बार,,,,,
फिर भी न देखा उस हरजाई ने हमे एक बार,,,,,
चले थे दीदार को उनकी हम आखरी बार,,,,,,,
तड़पाने बैठें थे हमें वो सोचके कई बार,,,,,,,
खतों को भी जला दिया और कर दिया राख का ढेर,,,,,,,,
पंछी भी कब तक बैठता धीरज की टूट गयी मुडेर,,,,
बीच मंझदार में फंसे आवाज पर आवाज लगाते गये,,,,,,,,
बेपरवाह हमे धकेल गहराई में खुद तैरकर निकल गये।।।
साँसों ने भी अब आना जाना रूह में छोड़ दिया,,,,,
वो हाले मोहब्बत में हमे मरीज़ समझकर निकल दीये,,,,,,,
कैसी शिकायत और इल्जाम उन पर लगाये,,,
यार ही खुदगर्ज़ी बेवफा सरेआम हमे तन्हा कर निकल गये।।।।।।।।
रचनाकार गायत्री सोनू जैन
सहायक अध्यापिका मंदसौर
मोबाइल नंबर 7772931211
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