Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
20 Mar 2017 · 7 min read

वो एक रात 2

#वो एक रात 2

रवि की हालत देखकर नीलिमा के हाथ पैर फूल गए। वह भागी हुई कमरे के अंदर गई और पानी की बोतल लाकर उसके छींटे रवि के चेहरे पर मारे। रवि को होश आते ही उसने डाॅक्टर विश्वास को बुला लिया। डाॅक्टर विश्वास कुछ दूरी पर ही रहते थे शायद दो तीन घर छोड़कर। उन्होंने कुछ दवाइयाँ दी और बताया कि किसी डर या दहशत से कभी-कभी आदमी बेहोश हो जाता है। आज इन्हें आराम करने दो। रात के 2:30 बज चुके थे। यूँ तो नीलिमा के मस्तिष्क में बहुत से सवाल उठ रहे थे। लेकिन उसने उस समय कुछ भी पूछना मुनासिब न समझा।
************************************************
चार दोस्त थे वे; और चारों की सोच अलग लेकिन कुछ तो ऐसा था जिसके कारण उनमें आपस में इतनी बनती थी। काॅलेज में जाते ही चारों का सबसे अलग ग्रुप बन जाता था। सुसी, दिनेश, इशी और मनु उत्तमनगर के बेहतरीन इंजीनियर काॅलेज में पढ़ते थे। लेकिन पढ़ते कम एन्जॉय में ज्यादा रहते थे। चारों अच्छे घरों से ताल्लुक रखते थे। सुसी के पापा का मारूति कार का अपना एक अच्छा खासा शोरूम था। सुसी की मम्मी उसे छोटी सी उम्र में ही छोड़कर चल बसी थी। मीना आई ने ही सुसी की देखरेख की। उसके पिता अवनेंद्र सोमकर अपने कारोबार में ही अधिक व्यस्त रहते थे, जिसका परिणाम यह हुआ कि सुसी थोड़ा उच्छ्रंखल हो गई थी।
दिनेश के पिता महेश दास की जूतों की फैक्टरी थी। उसकी माॅम कोई एनजीओ चलाती थी। दिनेश के माता पिता भी अपने अपने काम में मसरूफ रहते थे। दिनेश की परवरिश भी अन्नी काका के संरक्षण में हुई थी। अन्नी काका दिनेश के पिता जब 10 वर्ष के थे तबसे इस घर में नौकरी करते थे। पैर से थोड़ा लंगड़ाकर चलते थे।
इशी अपने मामा के यहाँ रहती थी बचपन से ही वह यहाँ पली बढी़। उसके मामा परमिंदर सिंह का लकड़ी का व्यवसाय था।
मनु के पापा कुछ वर्ष पहले एक सड़क दुर्घटना में गुजर गए थे। उसकी मम्मी पुष्पा गुसाई ने अपने पति की मोटर्स स्पेयर पार्टस कंपनी का काम अपने हाथ में ले लिया था।
इस तरह चारों दोस्त अच्छे रईस फैमिली से थे। इसलिए उनके एन्जॉय में कोई कमी आ जाए ऐसा तो हो ही नहीं सकता था।
एक बार वे चारों काॅलेज के लंच टाइम में एक पेड़ के नीचे बैठे थे।
” यार क्यूँ न कहीं घूमने का प्लान बनाया जाए” सिगरेट के धुएँ को हवा में उडा़ते हुए दिनेश ने कहा।
“हाँ, सही रहेगा, काफी दिनों से हवा पानी बदलने का मन हो रहा है।” सुसी ने समर्थन दिया।
“घूमोगे कहाँ? ” मनु ने मानो बात को पानी देते हुए कहा।
खामोश बैठी इशी बोली-“एक बात कहूँ? इस घूमने-वूमने के विचार को रहने ही दो। कुछ दिनों में पापा घर आने वाले हैँ। और मैं नहीं चाहती मेरी खूसट नानी को मेरी शिकायत करने का कोई चांस मिले।”
“अगर तुम तीनों जाना चाहते हो तो जा सकते हो।”
इशी ने कंधे उचकाते हुए दिनेश के हाथ से सिगरेट को लेते हुए कहा।
“नहीं इशी जाएँगे तो चारों जाएँगे नहीं तो नहीं” मनु ने कहा।
अब तो तीनों ने इशी को मनाने में कोई कसर नहीं छोडी़। थक हारकर इशी को हाँ करनी पडी़।
“लेकिन…. लेकिन हम दो दिन से ज्यादा नहीं घूम पाएँगे। दूसरे दिन की शाम को रिटर्न ले लेंगे। यस है तो बोलो, अदरवाइज, एज यू विश।” इशी ने मानो निर्णय दिया।
दिनेश, सुसी और मनु ने एक दूसरे की ओर देखा और डन हो गया। अब सवाल था कहाँ जाया जाए।
सबकी सोच को भंग करते हुए सुसी बोली ” यार ये जो उत्तमनगर के बैक साइड में बहुत बडा़ जंगल पडा़ है क्यूँ न अबकि बार वहाँ की सैर की जाए।”
दिनेश उछल पडा़ ” नहीं यार, वहाँ जाना शायद मना है और शाम के बाद तो इंदीपुर गाँव से आगे जाना बिलकुल मना है।” कहते हैं वहाँ का इलाका भयंकर जंगली जानवरों से भरा है।”
इशी ने बात को आगे बढा़या “मैंने तो यहाँ तक भी सुना है कि वहाँ अननैचुरल चीजें भी घटती हैं।”
“अरे ये सब सरकार का फंडा है, जिससे लोग जमीनों पर कब्जा न कर लें।” मनु ने कहा।
“हाँ ” मनु सही कह रहा है। ऐसा ही है। और मैं तो इन सब चीजों को मानती नहीं, जानवर तो हो सकते हैँ बट अननैचुरल….. उहुँ…. सब बकवास” सुसी ने हाथों को हवा में लहराते हुए कहा।
मनु और सुसी की बातों को सुनकर दिनेश और इशी ने भी अपनी सहमति दे दी और चारों ने एक अजनबी और रहस्यमय जगह पर जाने का प्लान बना लिया और उसके बाद सब अपनी-अपनी क्लासेज में चले गए।
**************************************************
उत्तमनगर की दक्षिण दिशा की तरफ रिहाइशी क्षेत्र से दूर कब्रिस्तान और श्मशान घाट का क्षेत्र था। केवल काँटों वाले तार दोनों की सीमा का निर्धारण करते थे। कब्रिस्तान का क्षेत्र काफी दूर तक फैला हुआ था। आगे जाकर वह उत्तमनगर के बैक साइड वाले पश्चिमी क्षेत्र के जंगलों से मिल जाता था। ये जंगल एक विशाल क्षेत्र में फैले हुए थे।
कब्रिस्तान और श्मशान के मिले जुले क्षेत्र को ‘भैंरो टीला’ कहा जाता था।
भैंरो टीले की सीमा शुरू होने से पहले एक अंग्रेजों के समय का चर्च बना हुआ था।
चर्च के घंटे ने 12 बजने की सूचना दे दी थी। रात ने स्याह परदा बडी़ ही खामोशी से ओढ़ रखा था। इक्का दुक्का कुत्तों के भौंकने की आवाजें और फिर उसी आवाज में जंगल के जानवरों की आवाजें मिल जाती तो एक अलग ही दहशत भरा वातावरण बन जाता था। आसमान साफ था और तारों से भरे आकाश को देखकर ऐसा लगता था मानों आकाश से कुछ आकृतियाँ जमीन पर उतरने को लालायित हैं।
ऐसे माहौल में एक स्याह आकृति बडे़ ही तेज कदमों से चर्च से आगे निकल गई। चाल तेज कदमों से थी परंतु चाल में एक ठहराव था जो इस चीज का संदेश था कि वह व्यक्ति लंगड़ाकर चल रहा था। लेकिन बडी़ तेजी से चौंकन्नी निगाहों से इधर-उधर देखता हुआ वह भैंरों टीले की तरफ रुख कर गया। दाढ़ी काफी बढी़ हुई थी बाल जितने भी थे सब बिखरे पडे़ हुए थे। अवस्था बुढ़ापे की ओर थी। हाथ में एक काला सा झोला लिए वह अपने गंतव्य की ओर बढा़ जा रहा था।
उसे इत्मिनान था कि कोई उसका पीछा नहीं कर रहा है। लेकिन दो चमकदार आँखें निरंतर उस पर लगी हुई थी। जंगली झाडियों के पीछे उन तेज आँखों का वजूद ढका हुआ था लेकिन बडी़ ही चतुराई से जरा सी भी बिना आहट किए वे आँखें उस रहस्यमयी व्यक्ति का पीछा कर रही थीं।
वह व्यक्ति कब्रिस्तान के पास आ चुका था। उसने कँटीली झाडियों को पार किया और कब्रिस्तान के अंदर घुसता चला गया।
एक ताजी कब्र के पास आकर वह व्यक्ति रूक गया। अपनी झोली को उसने एक सूखे पेड़ की ठूँठ पर टाँग दिया और बेलचे से उस ताजी कब्र को खोदने लगा। आँखें बराबर उस व्यक्ति को टारगेट बनाए हुई थी। व्यक्ति यंत्रवत् होकर कब्र खोदता रहा। तीन फुट की गहराई तक खोदने के बाद अचानक कब्र की एक दीवार से भयंकर साँसों को जमाने वाली आवाजें आईं। व्यक्ति का शरीर थरथराया लेकिन वह अपने काम पर डटा रहा, कब्र खोदने के। मानो इतनी दूर वह इसी कार्य के लिए आया था। तभी उसने कब्र खोदने का काम रोक दिया और कब्र से बाहर निकलकर उस झोले को उतारा और फिर कब्र में उतर गया।
उसने झोले को खोलकर कब्र की एक दीवार के पास रख दिया। उस झोले को खोलते ही वातावरण में एक अजीब सी गंध फैल गई मानो किसी मांस को कई महीने तक सडा़या गया हो। व्यक्ति कब्र की सामने वाली दीवार से चिपककर बैठ गया। तभी कब्रिस्तान में कुछ चमगादडो़ की आवाजें उभरी और एक तेज हवा ने सूखे पत्तों का एक बवंडर बना दिया। और थोड़ी ही देर में कब्र की दीवार से एक भयंकर जला हुआ हाथ निकला और झोले में रखी चीजों को उठाकर ले गया। व्यक्ति थरथरा रहा था और दीवार से बुरी तरह से कुछ खाने की आवाजें आ रहा थीं।
बड़ी विचित्र बात थी। पीछा करने वाली आँखें नजर नहीं आ रही थी। कुछ देर तक कब्रिस्तान में भयानक मंजर बना रहा और फिर सब कुछ शांत हो गया। कब्र की दीवार से खून की एक दो बूँदें नुमाइंद हुई और व्यक्ति ने कब्र से निकलकर अपने घर की ओर कदम बढा़ दिए।
*************************************************
सुबह के समय रवि के घर ओफिस वालों का जमावड़ा लगा रहा। मिसेज वर्मा ने रवि से कहा” भई रवि बाबू मैं तो अब आपको रात को रोकूँ नहीं, और अगर रात को रुकने से तुम्हारी तबियत खराब हो जाती है तो तुमने बताया क्यूँ नहीं”।
नीलिमा सबकी आवभगत में लगी रही। रवि को ओफिस से कुछ दिनों की लीव दे दी गई थी। रवि ने रात के उस भयानक मंजर का अपनी पत्नी के सामने कोई जिक्र नहीं किया था।
थोड़ी देर में सभी चले गए। नीलिमा ने सोचा अब वह रवि के पास बैठेगी और उससे पूछेगी कि आखिर रात ऐसा क्या हुआ था; जो वे इतने डरे हुए थे। और डिग्गी में क्या दिखाना चाहते थे वे।
रवि अभी भी कल की घटना के किसी सिरे पर नहीं पहुँचा था। आखिर लाश कहाँ गई। अचानक उसे कुछ याद
आया। रात जो कपड़े उसने पहने थे वह अब भी उन्हीं कपडो़ में था। वह बिस्तर से उछलकर खडा़ हुआ और अपने कपडो़ को बड़ी गौर से देखने लगा। उसकी आँखें फैल गई। टूटकर पसीना-पसीना हो गया वह। उसने उस लड़की की लाश को उठाया था तो लाश का खून कपडो़ं पर होना चाहिए था लेकिन उसके कपड़े साफ था। वह तुरंत बिस्तर से उतरा। कार की चाबी उठाई और बाहर खडी़ कार तक भागा। नीलिमा उसे पुकारती सी रह गई लेकिन वह सीधा कार के पास जाकर रुका। नीलिमा भी वहाँ पहुँच चुकी थी। रवि ने फिर डिग्गी खोली उसका दिमाग भन्ना गया। डिग्गी में खून के जरा से भी निशान न थे। उसे फिर चक्कर आ गया। लेकिन अब उसे नीलिमा ने थाम लिया। “क्या बात है आखिर रवि! मुझे भी तो कुछ बताओ।” नीलिमा ने पूछा।
“मुझे थोड़ा आराम करने दो नीलू प्लीज ” रवि ने खुद को सँभालते हुए कहा।
नीलिमा ने उसे बैड पर लिटाया और मैं तुम्हारे लिए चाय बनाकर लाती हूँ कहकर किचन में चली गई।
रवि का दिमाग घोडे़ की तरह दौड़ रहा था। आखिर कौन थी वो लड़की और इतनी रात को सड़क के बीचों-बीच क्या कर रही थी। रवि सोच में डूबा हुआ था कि
अचानक उसे नीलिमा के चीखने की बहुत तेज आवाजें उसके कानों में पडी……………… ।
सोनू हंस

Language: Hindi
423 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
गुमराह जिंदगी में अब चाह है किसे
गुमराह जिंदगी में अब चाह है किसे
सिद्धार्थ गोरखपुरी
The Little stars!
The Little stars!
Buddha Prakash
संत गाडगे संदेश 5
संत गाडगे संदेश 5
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
चाहत में उसकी राह में यूं ही खड़े रहे।
चाहत में उसकी राह में यूं ही खड़े रहे।
सत्य कुमार प्रेमी
पाप बढ़ा वसुधा पर भीषण, हस्त कृपाण  कटार  धरो माँ।
पाप बढ़ा वसुधा पर भीषण, हस्त कृपाण कटार धरो माँ।
संजीव शुक्ल 'सचिन'
स्वतंत्रता की नारी
स्वतंत्रता की नारी
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
कोई तंकीद
कोई तंकीद
Dr fauzia Naseem shad
एक आज़ाद परिंदा
एक आज़ाद परिंदा
Shekhar Chandra Mitra
*तपन*
*तपन*
DR ARUN KUMAR SHASTRI
"दुविधा"
Dr. Kishan tandon kranti
ताजन हजार
ताजन हजार
डॉ०छोटेलाल सिंह 'मनमीत'
हम बच्चों की आई होली
हम बच्चों की आई होली
लक्ष्मी सिंह
कौन पढ़ता है मेरी लम्बी -लम्बी लेखों को ?..कितनों ने तो अपनी
कौन पढ़ता है मेरी लम्बी -लम्बी लेखों को ?..कितनों ने तो अपनी
DrLakshman Jha Parimal
बाँस और घास में बहुत अंतर होता है जबकि प्रकृति दोनों को एक स
बाँस और घास में बहुत अंतर होता है जबकि प्रकृति दोनों को एक स
Dr. Man Mohan Krishna
एक पूरी सभ्यता बनाई है
एक पूरी सभ्यता बनाई है
Kunal Prashant
मैं  गुल  बना  गुलशन  बना  गुलफाम   बना
मैं गुल बना गुलशन बना गुलफाम बना
भवानी सिंह धानका 'भूधर'
चवन्नी , अठन्नी के पीछे भागते भागते
चवन्नी , अठन्नी के पीछे भागते भागते
Manju sagar
जिंदगी के रंगमंच में हम सभी किरदार है
जिंदगी के रंगमंच में हम सभी किरदार है
Neeraj Agarwal
निकलो…
निकलो…
Rekha Drolia
💐प्रेम कौतुक-463💐
💐प्रेम कौतुक-463💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
जिंदगी
जिंदगी
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
अपने जीवन के प्रति आप जैसी धारणा रखते हैं,बदले में आपका जीवन
अपने जीवन के प्रति आप जैसी धारणा रखते हैं,बदले में आपका जीवन
Paras Nath Jha
बादल  खुशबू फूल  हवा  में
बादल खुशबू फूल हवा में
shabina. Naaz
■उलाहना■
■उलाहना■
*Author प्रणय प्रभात*
मुझे  बखूबी याद है,
मुझे बखूबी याद है,
Sandeep Mishra
23/09.छत्तीसगढ़ी पूर्णिका
23/09.छत्तीसगढ़ी पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
पराठों का स्वर्णिम इतिहास
पराठों का स्वर्णिम इतिहास
हिमांशु बडोनी (दयानिधि)
नालंदा जब  से  जली, छूट  गयी  सब आस।
नालंदा जब से जली, छूट गयी सब आस।
दुष्यन्त 'बाबा'
छह दोहे
छह दोहे
Ravi Prakash
लहरों ने टूटी कश्ती को कमतर समझ लिया
लहरों ने टूटी कश्ती को कमतर समझ लिया
अंसार एटवी
Loading...