Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
20 Mar 2017 · 5 min read

वो एक रात 1

रवि दीक्षित को आज और दिन से ज्यादा वक्त हो गया था, ओफिस में काम करते-करते। यूँ तो 8 बजे ओफ हो जाता था परंतु अभी भी बहुत सी फाईलों को देखना बचा था। उसे झुंझलाहट हो रही थी खुद पर। क्यूँ उसने अतिरेक में इन फाईलों का भार अपने सिर पर ले लिया था। मिसेज वर्मा बाॅस के रूप में थोड़ी स्ट्रिक्ट औरत थी, जब से राजेश वर्मा की तबियत खराब हुई थी तो कंपनी की सभी जिम्मेदारी मिसेज वर्मा ने ले ली थी।
ओफिस के सभी पर्सन मिसेज वर्मा को खुश करने में लगे रहते थे। अधिक खूबसूरत तो थी नहीं परंतु आकर्षक थी। बदन अधिक भारी नहीं था तो छरहरा भी नहीं था। हाँ, बालों की खूबसूरती देखते ही बनती थी। आज की महिलाएँ सामान्य तौर पर छोटे बाल रखना पसंद करती हैं लेकिन मिसेज वर्मा के बाल लंबे थे। रोजाना नई रंग बिरंगी साडि़याँ पहनकर आती थी। उनके ओफिस में पैर रखते ही सन्नाटा छा जाता था। एक ऊँगली में पर्स को लटकाए हुए आती और वर्मा जी की चहेती सेक्रेट्री अरूणिमा को उसी ऊँगली के इशारे से अपने पीछे-पीछे आने का इशारा कर देती।
और अनमने मन से न चाहते हुए भी अरूणिमा को उनके पीछे-पीछे चलना पड़ता।
आज रवि इन्हीं मैडम के जाल में फँस गया और हाँ कर बैठा।
रात के 10 बज चुके थे। नीलिमा की कई काॅल आ चुकी थी। ओफिस में केवल वही अपने केबिन में था। बाहर चौकीदार अभी से ही ऊँघने लगा था। तभी रवि के फोन की घंटी बज गई।
फोन के उस तरफ नाराजगी मिश्रित मधुर आवाज थी “कहाँ हो जनाब! रात के 10 बज चुके हैं, आना नहीं क्या?”
“बस थोड़ी देर में निकलने वाला हूँ नीलू, आज थोड़ा ज्यादा काम है।” रवि ने प्यार से कहा।
“आज ही करना है क्या? छोडो़ अब और घर आओ! अब से चलोगे तो 1 घंटा लग जाएगा घर आने में।” उधर से आवाज आई।”
“ठीक है बस चलने वाला हूँ ”
रवि ने फोन बंद करके अपने सामने पडी फाईलों को देखा। रवि का चेहरा तन गया। अभी भी 6-7 फाईलें पडी थी। अब भी एक घंटा लग सकता था उन फाईलों को निपटाने में। उसने थोड़ी देर तक फाईलों को घूरा और फिर अपने काम में लग गया।
11 बजे से भी ऊपर का समय हो गया था। रवि ने आखिरी फाईल का वर्क निपटाया और जल्दी से अपना सूटकेस उठकर चाबी चौकीदार को सौंप अपनी गाड़ी की तरफ भागा।
ओह नीलू के गुस्से का सामना करना पडे़गा घर जाते ही। लेकिन रवि को विश्वास था वह नीलू को मना लेगा। वैसे भी नीलू को ज्यादा गुस्सा आता ही नहीं था। यह सोचते ही रवि के होठों पर मुस्कान उभर गई।
सड़क पर चारों ओर सन्नाटा पसरा पडा़ था। इक्का-दुक्का कुत्ते के भौंकने की आवाजें आ जाती थी। फरवरी का महीना वैसे भी खुशगवार होता है परंतु शाम होते-होते हल्की हल्की धुंध छा जाती है। रवि और दिन से थोड़ा तेज गाड़ी चला रहा था। उसे नीलू की फिक्र थी। बेचारी ने अभी तक मेरी वजह से खाना भी नहीं खाया होगा। फोन करता हूँ…… फोन…. फोन कहाँ है मेरा….. ओह फोन तो ओफिस में ही रह गया। ओह सिट्…… नाराजगी से सिर झटका रवि ने। अब तो वापिस भी नहीं जाया जा सकता था। काफी दूर जो आ चुका था रवि। ओह नीलू फोन कर रही होगी औरफोन न उठने पर परेशान हो रही होगी। यह सोचते ही रवि ने गाड़ी के एक्सीलेटर पर दबाव बढा़ दिया। गाड़ी सुनसान रास्ते पर बडी़ तेजी से भागी जा रही थी।
अचानक रवि की नजर बैक मिरर पर पडी़ तो उसे झटका सा लगा। उसे पिछली सीट पर कोई बैठा नजर आया। उसने पीछे मुड़कर देखा तो वहाँ कोई नहीं था।
यह क्या…… ओह ज्यादा काम करने की वजह से ऐसा हो सकता है। उसने सिर झटका….. मेरा वहम है और कुछ नहीं।
धुंध बढ़ती जा रही थी। रवि को लगा कि सामने कोई बीच सड़क पर खडा़ है। उसकी गाड़ी स्पीड में थी। उसके होश गुम हो गए उसने तेजी से ब्रेक मारे। मगर इतने में वह शख्स गाड़ी से टकरा गया और सुनसान वातावरण में उसकी तेज हृदय विदारक चीखें गूँज गईं।
रवि की धड़कनें उसकी छाती से बाहर निकलने को हो रही थी। वह तेजी से नीचे उतरा और उस शख्स की ओर भागा।
ओह! वह एक लड़की थी। जिसका चेहरा खून से लथपथ था। उसके कपडे़ भी उसके खून से सने हुए थे। रवि के होश फाख्ता हो गए। उसने लड़की की साँसें व नब्ज चैक की। वह मर चुकी थी।
रवि की टाँगें काँपने लगी। वह पत्थर की तरह जम गया। उसने किसी तरह से अपने आपको इकट्ठा किया और लड़की की लाश को उठाकर अपनी गाड़ी की पिछली डिग्गी में लिटा दिया।
रवि को अपने पैर बडे़ भारी महसूस दे रहे थे। उसको एक एक कदम रखने में बहुत हिम्मत करनी पड़ रही थी। उसका दिमाग सुन्न हो गया था। लाश को डिग्गी में लिटाकर वह गाड़ी में आ गया। अब क्या करे?
अचानक उसके दिमाग में कुछ आया और उसने गाड़ी स्टार्ट की और उसका रुख घर की ओर मोड़ दिया।
****************–*–***********************
जंगल में रात जवान होने लगी थी। जहाँ उस लड़की की लाश पडी़ थी उसके पास कहीं से एक बेहद स्याह बिल्ली आई। उसकी आँखें अँधेरे को चीरती हुई चमक रही थी। सड़क पर बिखरे खून को उसने अपनी तलवार सी जीभ से लपालप चाटना शुरू कर दिया। बडे़ ही बेहबसी तरीके से वह खूंखार बिल्ली उस जमे हुए खून को चाट रही थी। थोड़ी ही देर में सड़क पर खून का धब्बा तक न था। अचानक कहीं से एक मोटा चूहा रेंगता हुआ सड़क पर से गुजरा बिल्ली ने तुरंत उस पर झपट्टा मारा और…… चूहे का सर बिल्ली के मुँह में और धड़ उसके पंजों में था।
चपर….. चपर करके उसने चूहे की हड्डी तक चबा डाली और सन्नाटे को चीरती अपनी मनहूस आवाज…. मियाऊँ…….. मियाऊँ करती हुई जंगल में विलुप्त हो गईं।
********************************************
1 बज चुका था। नीलिमा परेशान थी। पता नहीं फोन क्यूँ नहीं उठा रहे। कुछ अनहोनी तो………नहीं नहीं ऐसा मत सोच नीलू हो सकता हो काम की वजह से फोन बंद कर दिया हो….. लेकिन क्या अब तक काम ही कर रहे हैं। उसने दोबारा घड़ी पर नजर डाली। सवा बज चुका था। उसने खिड़की से बाहर सड़क की ओर निहारा…… सुनसान सड़क पर धुंध पसरी हुई थी। कभी-कभी दूर कहीं से कुत्तों के भौंकने की आवाजें आ जाती थी और चौकीदार की सीटी की आवाज। बेचैनी बढ़ती जा रही थी। रह रहकर न सोचते हुए भी बुरे बुरे ख्याल मन में आ जा रहे थे। इतने में नीलू की खुशी का पारावार न रहा। उसे चिर परिचित गाड़ी की आवाज सुनाई दी। वह तुरंत बाहर की ओर भागी और दरवाजा खोल दिया।
रवि की हालत बदहवास थी। एकाएक तो वह रवि की हालत को देखकर हड़बड़ा गई। नी……… लू………. नी……. लू……. ययहाँ आ…….. आओ….. रवि की जबान दहशत में लड़खडा़ रही थी।
क्या हुआ रवि…… तुम ठीक तो हो। अंदर आओ न और गाड़ी को पोर्च में खडी़ करो न। यहाँ क्यूँ खडी़ की है। रवि ने खुद को सँभालने का पूरा प्रयत्न किया और नीलिमा को अपने साथ गाड़ी की डिग्गी के पास ले गया। डिग्गी को खोलते हुए उसके हाथ काँप रहे थे। चाबी लग ही नहीं पा रही थी। क्या हुआ रवि….. अनजाने भय से नीलिमा काँप गई….. डिग्गी क्यूँ खोल रहे हो! क्या दिखाना चाहते हो? और तुम्हें हुआ क्या है।
इतने में रवि डिग्गी खोल चुका था जैसे ही उसने डिग्गी का दरवाजा उठाया, भय से उसकी आँखें चौड़ी हो गईं उसके कदम लड़खडा़ए और वह बेहोश हो गया…….
डिग्गी से लाश गायब थी……….. ।
सोनू हंस

Language: Hindi
294 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
दुश्मन जमाना बेटी का
दुश्मन जमाना बेटी का
लक्ष्मी सिंह
2499.पूर्णिका
2499.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
पैसा और ज़रूरत
पैसा और ज़रूरत
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
■ अनफिट हो के भी आउट नहीं मिस्टर पनौती लाल।
■ अनफिट हो के भी आउट नहीं मिस्टर पनौती लाल।
*Author प्रणय प्रभात*
मेरे प्रेम पत्र
मेरे प्रेम पत्र
विजय कुमार नामदेव
आँखे मूंदकर
आँखे मूंदकर
'अशांत' शेखर
"गीत"
Dr. Kishan tandon kranti
मानवता
मानवता
Rahul Singh
फितरत
फितरत
Kanchan Khanna
यदि कोई आपकी कॉल को एक बार में नहीं उठाता है तब आप यह समझिए
यदि कोई आपकी कॉल को एक बार में नहीं उठाता है तब आप यह समझिए
Rj Anand Prajapati
सुनो द्रोणाचार्य / MUSAFIR BAITHA
सुनो द्रोणाचार्य / MUSAFIR BAITHA
Dr MusafiR BaithA
💐अज्ञात के प्रति-150💐
💐अज्ञात के प्रति-150💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
किया है यूँ तो ज़माने ने एहतिराज़ बहुत
किया है यूँ तो ज़माने ने एहतिराज़ बहुत
Sarfaraz Ahmed Aasee
गीत
गीत
Shiva Awasthi
शिव की बनी रहे आप पर छाया
शिव की बनी रहे आप पर छाया
Shubham Pandey (S P)
मीलों का सफर तय किया है हमने
मीलों का सफर तय किया है हमने
कवि दीपक बवेजा
भीड़ की नजर बदल रही है,
भीड़ की नजर बदल रही है,
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
When conversations occur through quiet eyes,
When conversations occur through quiet eyes,
पूर्वार्थ
माना अपनी पहुंच नहीं है
माना अपनी पहुंच नहीं है
महेश चन्द्र त्रिपाठी
प्यासा के हुनर
प्यासा के हुनर
Vijay kumar Pandey
विजयी
विजयी
Raju Gajbhiye
माँ
माँ
श्याम सिंह बिष्ट
ग़ज़ल - ख़्वाब मेरा
ग़ज़ल - ख़्वाब मेरा
Mahendra Narayan
There are few moments,
There are few moments,
Sakshi Tripathi
जिस्म से जान निकालूँ कैसे ?
जिस्म से जान निकालूँ कैसे ?
Manju sagar
मुहब्बत हुयी थी
मुहब्बत हुयी थी
shabina. Naaz
मुक्तक
मुक्तक
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
जां से बढ़कर है आन भारत की
जां से बढ़कर है आन भारत की
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
पितरों के सदसंकल्पों की पूर्ति ही श्राद्ध
पितरों के सदसंकल्पों की पूर्ति ही श्राद्ध
कवि रमेशराज
*अपराधी लड़ने चले,लेकर टिकट चुनाव (कुंडलिया)*
*अपराधी लड़ने चले,लेकर टिकट चुनाव (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
Loading...