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24 Jul 2018 · 7 min read

वो एक दिन…

मेरे उपन्यास का कुछ भाग…..

आगे की कहानी आपको में शेयर करूँगा पढ़कर कमेंट जरूर करें ….

सर्दियों के दिन थे दो दिनों की साप्ताहिक छुट्टियाँ थीं, शनिवार का दिन परिवार के साथ गुज़र गया था । अगले दिन सुबह करीब 10 बजे घर पर खाना खाकर बैठा ही था,कि अचानक मोबाइल की घंटी आवाज़ कानों में गूँजी । बाथरूम में स्नान कर रही बेगम साहिबा ने आवाज़ दी और फ़ोन के लिये निर्देशित किया । वो रविवार का दिन था, फ़ोन उठाकर देखा तो ईशान का नंबर मोबाइल स्क्रीन पर दिखाई दिया।

रमन(मैं)- हेल्लो ईशान क्या हाल हैं भाई…

ईशान- कहाँ हो सर……हम सब लोग (ईशान, रोहित, पप्पू) अलीगढ़ ही आये हुए हैं आ जाओ …होटल पर खाना खा रहे हैं ।

रमन- भाई घर पर ही हूँ , अभी खाना खाया है बस टीवी देख रहा था..

ईशान- आ जाओ आपकी मनपसंद चीज़(बीयर -ब्रांड tubarge ) ले ली है..

रमन – भाई रहने दो मेरा पेट भरा हुआ है अब नहीं वैसे भी सर्दी बहुत है आज बियर नुकसान करेगी..

ईशान – रोहित भाई कह रहे हैं किडबिल्ला (गुँजन नाम की महिला जिसका काम है शारीरिक सम्बन्ध बनाने के लिए लड़कियाँ उपलब्ध कराना) के पास चलने की.. आप आ जाओ फिर चलते हैं

रमन- ओह्ह….वहाँ की तैयारी करके आये हो सब …साले जल्दी मरोगे सब…

ईशान- सर् शराब तो हो गयी बस अब शबाब के पास जाना है…आप जल्दी आओ…

रमन- साले मुझे भी मरबाओगे क्या अपने साथ…रहने दो में नहीं आ रहा..

फ़ोन को रोहित ले लेता है ईशान से..

रोहित- आ जाओ न सर .. आपके लिये आज स्पेशल इंतज़ाम कराया है ।

रमन- नहीं भाई में नहीं आ रहा तुम लोग जाओ और मजे करो…

रोहित- देख लो सर् फिर मत कहना कि बताया नहीं आपको आख़िरी बार बोल रहा हूँ …आ जाओ नहीं तो पछताओगे…

रमन – धीमी आवाज़ में…चलो अभी में तुम्हे 10 मिनट में फ़ोन करके बताता हूँ…

रोहित – ok सर् ( फ़ोन कट जाता है)..

मन ही मन सोच रहा था कि क्या करूँ कहीं कुछ लफड़ा न हो जाये । ऐसा न हो, वैसा न हो , ऐसा हुआ तो ये हो जाएगा, अगर वैसा हुआ तो ये हो जाएगा..इसी उधेड़ -बुन में उलझा हुआ था कि पत्नी पूछ बैठी कही जाओगे क्या आज……मैने दबी हुई जुबान से बोला …हाँ जाना तो है एक साथी है अभी शहर आया हुआ है कह रहा है आ जाओ मिलने …तो सोच रहा हूँ उससे जाकर मिल आऊँ…

ठीक है चले जाओ लेकिन जल्दी आना घर का सामान भी लाना है , ये सामान लाना है , वो काम कराना है , बिजली का बिल जमा करना है इस तरह बहुत सारे कामों को गिनाते हुए पत्नि महोदया बोलीं..

मैंने भी सिर हिलाते हुए हामी भर दी ।

फ़िर फोन उठाकर ईशान को फ़ोन मिलाया …

ईशान- हेलो सर् आ जाओ जल्दी आ जाओ चल रहे है किडबिल्ला के पास…

रमन- मैं आ रहा हूँ अभी दस मिनट में पहुँच रहा हूँ तुम्हारे पास…तैयार रहना चलने को…

ईशान – ok…

मैंने जल्दी से बाईक उठाई और पहुँच गया , लालगंज चौराहे पर , सभी ने मुझे देखकर अपने चेहरे पर मुस्कराहट के भाव दिए । दस -पंद्रह मिनट बैठकर हम सभी लोग गुंजन के बताए पते के नज़दीक पहुँच गए, और उसके फ़ोन का इंतज़ार करने लगे कि वो कब हाँ बोले उस घर में अंदर आने के लिये । पाँच-छः मिनट इधर-उधर टहलने के बाद हमें दो लोगों के अन्दर आने के लिये इशारा मिला । शुरुआत में रोहित और मैं अन्दर पहुँच गये, जब मैं मकान के अन्दर पहुँचा तो बहुत ही अजीब सा महसूस हुआ । क्योंकि घर जितना बाहर बड़ा दिख रहा था कमरा उतना ही छोटा था की सिर्फ़ एक चारपाई पड़ी हुई थी जिसपर एक बुढ़िया ( उम्र लगभग -65 ) लेटी हुई थी , और सिर्फ़ दो कुर्सियाँ लगी हुईं थी चारपाई के बराबर में ।

गुँजन ने कुर्सी की तरफ़ इशारा करते हुए मुझे बैठने के लिये कहा ……मैं पहले से ही नर्वस था तो मुझे 40 सेकेण्ड के करीब सोचने में लगा कि क्या बोला ।

गुँजन- सर् बैठिये न …

मैं सिर हिलाते हुए कुर्सी पर बैठ गया ।

कमरे में एक छोटा सा दरवाज़ा भी था जोकि एक कपड़े के पर्दे से छुपा हुआ था , जिसे मैं पहले अलमारी समझ रहा था ।
गुँजन पर्दे को हटाते हुए गेट खोलती है और अंदर जाती है …दो मिनट बाद वापस आती है और साथ में तीन सुँदर लड़कियों को लेकर निकलती है जिनकी उम्र औसतन 20-22 साल की रही होगी । लड़कियाँ चारपाई पर लेटी हुई महिला के इर्द-गिर्द बैठ जाती हैं ।

गुँजन – बताओ रोहित…(रोहित को पूछते हुए कि पहले कौन जाएगा, और किस लड़की के साथ)

रोहित- पहले हमारे सर जाएंगे….सर् बताओ किस के साथ तीनों खड़ी लड़कियों की तरफ इशारा करते हुए ।

*मैंने बीच में खड़ी लडक़ी की ओर इशारा किया, जोकि इकहरे बदन को समेटे हुए कुर्ता व जींस पेंट में खड़ी थी । मेरे हाथ का इशारा देखते हुए लड़की के चेहरे पर मुस्कान आ गयी, जैसे कि उसने पहले ही सोच रखा था कि मैं उसे ही पसन्द करूँगा ।

लड़की के चेहरे की मुस्कान देखकर मेरे शरीर में शिहरन सी पैदा हुई व शरीर पर रौंगटे खड़े पड़ गए।

गुँजन – अनामिका सर् की सेवा अच्छे से करना…
कोई शिकायत का मौका मत देना..
पहली बार आये हैं हमारे यहाँ..

अनामिका – आपको व सर् को मौका नहीं दूँगी कुछ कहने का । यह कहते हुए अनामिका कमरे से दूसरे छोटे कमरे में प्रवेश कर गयी और पीछे-पीछे में…

ये क्या है …यह तो उससे भी छोटा (ये में मन ही मन सोच रहा था क्योंकि यहाँ तो सिर्फ़ एक लगभग आठ फुट लम्बी व चार फ़िट चौड़ाई की एक तख़्त पड़ी हुई थी जोकि एक गद्दे व चादर से ढकी हुई थी, और कपड़े टाँगने के लिये चार हैंगर व एक डस्टबिन प्लास्टिक की रखी हुई थी ।

अनामिका मेरे शरीर से कोट को उतारते हुए लिपटने लगती है । मैंने हाथ छिड़कने की कोशिश की लेक़िन वह मेरे बदन से लिपटने मैं सफ़ल हो जाती हैं ।

अनामिका – सर् अब इसमें शरमाने की क्या जरूरत है …
हमें तो आदत है सब कुछ झेलने की……
कोई जल्दी नहीं है आप आराम से तैयार हो जाइए…..

क्यूँ करती हो ये सब…?????…..मेरी ज़ुबान से एक प्रश्न अनामिका के लिये निकला ।

आख़िर क्यों करती हो ये सब !!!

कहाँ की रहने वाली हो..लोकल इसी शहर की हो या किसी दूसरी जगह से हो..

यहाँ कब से आ रही हो..

कैसे पहुँचती हो यहाँ …

इन्हें (गुँजन को) कैसे जानती हो…

कोई घर पर पूछता नहीं कि कहाँ जा रही हो…

या किसी को पता नहीं कि तुम ऐसा करती हो…

अनामिका- सर् मजबूरी है मेरी …!!
आप छोड़िये ये सारी बातें…
आप ये सब क्यूँ पूछ रहे हो !!
क्या करोगे ये सब जानकर सर् जी….

रमन- मैं बस जानना चाहता हूँ कि आख़िर तुम ऐसा क्यों करती हो…ऐसा करने की बजाय तुम कोई अन्य काम भी कर सकती हो…कही नौकरी करो किसी फैक्ट्री या कम्पनी में..!!

हम दोनों (रमन व अनामिका ) उस तख़्त पर बैठ जाते हैं एक दूसरे का हाथ थामे हुए ।

मैंने बहुत सारे सवाल किए अनामिका से बहुत से सवालों से में सहमत हुआ व अधिकतर सवालों के जबाबों से मैने असहमति जाहिर की ।

क़रीब पौन घंटे अनामिका के साथ बैठकर बातें की व उसे समझाया कि तुम ये सब गलत कर रही हो । उसने भी मेरी बातों से सहमति जाहिर करते हुये सिर हिलाया व आगे से ये सब छोड़ने की बात की । फ़िर अनामिका ने मुझे मेरा कोट पहनाने की कोशिश की लेकिन मैंने इनकार करते हुए उसके हाथोँ से कोट लेकर ख़ुद पहना ।

रमन- बाहर बैठे लोगों को हमारी बातों व हमारी कार्ययोजना का पता न लगे इसलिये अनामिका ने विस्तर को ठीक किया । कुछ पेपर के टुकड़े करके उनके लपेटकर डस्टबिन मैं डाल दिये । ये भी बता बोल दिया कि अब जो भी आज आएगा और अनामिका को सिलेक्ट करेगा तो तबियत खराब होने का बहाना बनाकर मना कर देगी। मैंने अनामिका को समझा दिया और उसने भी मुझे एक दो बात बताई कि बाहर मुझे किस तरह से रिएक्ट करना है । हम दोनों ने आपस में एक दूसरे के मोबाइल नंबर ले लिये थे ।

भई मान गए आपको गुँजन जी……
क्या इंतज़ाम रखती हो, मज़ा आ गया ।
दाद देनी पड़ेगी आपको और आपके इंतज़ामात को…

गुँजन नाम है मेरा…मुस्कराते हुए गुँजन ने कहा ।

अब मैं बाहर आ चुका था.. अब बारी रोहित की थी ।

रोहित ने दूसरी लड़की को पसंद किया और वह उसे ले गया । इस तरह एक के बाद एक सभी लोग गए लेकिन अनामिका किसी के साथ नहीं गयी ।

रोहित – गुँजन भाबी जी अब हम चलते हैं फ़िर कभी मौका मिलेगा तो मिलेंगे आपसे…….

रोहित शराब के नशे में झूमते हुए….

जब तुमसे झिलती नहीं है तो फिर क्यूँ पीते हो इतनी…(गुँजन ने डाँटती हुई आवाज़ में रोहित से कहा)

अब जब भी मिलना …शराब पीकर तो मत आना बस !!

ऐसे ही दो -तीन डाँटने वाले शब्दों के साथ हम वहाँ से चले आये ।
क़रीब दस दिनों बाद अनामिका का का फ़ोन आया

फ़ोन किसी नए मोबाइल नंबर से था तो मैं पहचान नहीं पाया…

हेल्लो सर् नमस्कार …मैं अनामिका बोल रही हूँ ।

रमन- हाँ बोलो अनामिका …कैसी हो..

क्या चल रहा है …

ठीक तो हो…

घर पर सब कैसे है…

इस तरह के कई सवाल बिना रुके अनामिका को पूछ डाले..

वो कहते है न कि किसी से बात करने को ओर समझाने को दिल कर रहा हो और उससे बात न हो पा रही हों, फ़िर अचनाक से उसका फ़ोन आ जाये तो ये सब लाज़िमी था ।

अनामिका – में ठीक हूँ सर् …आप बताइए..
रमन- में भी ठीक हूँ.. अपने बारे में बताओ अब क्या सोचा है तुमने ..अपने कैरियर के बारे में..

अनामिका – सर् मैंने आपके कहने पर यहीं एक कोंचिंग जॉइन कर ली है और शाम को घर पर क़रीब दस बच्चों को ट्यूशन दे रही हूँ…उसदिन आपसे बात करने और घर लौटने के बाद में पूरी रात सोई नहीं , और पूरी रात रोती रही…

लेकिन मैं अब अच्छा महसूस कर रही हूं….सिर्फ आपकी वज़ह से…

आप बहुत अच्छे है सर्…

इस तरह अनामिका ने अपने अंदर की सारी बातें जो अब तक शायद किसी से नहीं कही होंगी एक ही बार में बिना रुके बोल दीं ।

अब अक्सर उससे बातें होती हैं , जब भी उसका मन होता है तो वो फ़ोन कर लेती है, और मेरा मन करता है तो मैं उससे बात कर लेता हूँ लेक़िन ध्यान रखता हूँ कि बातें हमेशा स्वस्थ व स्वच्छ होनी चाहिए…

आर एस बौद्ध”आघात”
8475001921

Language: Hindi
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