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30 Oct 2020 · 4 min read

वोटरों(चुनाव) को भ्रमित करता प्रधानमंत्री पद ..

वर्तमान भारतीय राजनीति में हम देखते है जब किसी प्रांत में चुनाव आते है तो देश के प्रधानमंत्री और केबिनेट मंत्री सभी अपने अपने स्तर पर चुनाव प्रचार करते है और रैलियां भी करते है । अपनी पार्टी को जीत दिलाने के लिए एक तरह से उनका यह प्रयास जरूरी भी होता है क्योंकि उनकी पहचान ही उनकी पार्टी होती है उसी पहचान से वो देश की इस सबसे शक्तिशाली सीट पर काबिज हुए है ,
किन्तु अगर इसे दूसरे नजरिये से देखे तो यह गलत होता है और चुनाव की निस्पक्षता को प्रभावित करता है यहाँ तक कि वोटर की उस सोच को भी प्रभावित करता है जिस सोच से वोटर अपने वोट के लिए अपने अनुसार एक उचित प्रत्याशी को वोट करता है।
संविधान के अनुसार देश का प्रधानमंत्री और उसकी सरकार केवल उन्हीं लोगों की नही है जिन्होंने वोट किया है बल्कि समान रूप से उन लोगों की भी है जिन्होंने उनको वोट नही भी किया है । देश का प्रधानमंत्री और उसकी सरकार देश का सर्वोच्च व्यक्ति और संस्था होती है जिसके हाथ में देश के सभी संसाधन ,सभी पद ,सभी संस्थाएं एवं देश की समस्त इकॉनमी होती है। उसी के आदेश से देश का बजट बनता है और देश के संसाधनों का वितरण। उसी के आदेश से सभी राज्यो को देश के संसाधनों का वितरण किया जाता है।
भले ही राष्ट्रपति भारत का मुखिया होता है किंतु संविधान उसे केवल औपचारिक मुखिया ही मानता है और वह कार्यपालिका के अनुसार कार्य करने के लिए ही बाध्य हैं।
इसलिए देश का प्रधानमंत्री देश के सभी लोगों का प्रतिधिनित्व करने के साथ साथ देश के सभी संसाधनों का रखबाला भी होता है। इसलिए अगर प्रधानमंत्री प्रान्तों के चुनावों में रैलियां कर चुनाव प्रचार करता है तो कहीं ना कहीं वोटरों पर इस बात का प्रभाव पड़ता है और उनका वोट निस्पक्ष नही हो पाता।
क्योकि देश का प्रधानमंत्री जो बोलेगा जनता की नजरों में एकदम सच और तथ्यों के अनुरूप बोलेगा भले ही प्रधानमंत्री केवल वोट लेने के लिए ही झूठी बयानबाजी क्यों न करे या झूठा वादा ही क्यों ना करे ।
इसके साथ जनता यह भी महसूस करती है कि अगर इस दल के अलाबा और कोई सरकार बनेगी तो आर्थिक रूप से और राजनितिक रूप से दोनों सरकारों में अक्सर टकराब बना रहेगा और प्रान्त की स्थिरता और विकास नकारात्मक रूप से प्रभावित होंगे ।
साथ ही देश की जनता देश प्रधानमंत्री की बातों पर कही ज्यादा विस्वास करती है अन्य दलों के नेताओं की अपेक्षा।
अतः प्रधनमंत्री के द्वारा किए चुनावी प्रचारों से वोटरों की निष्पक्षता नकारात्मक रूप से प्रभावित होती है जिससे वोटरों को एक सही प्रत्यासी का चुनाव करने में दिक्कत महसूस होगी क्योंकि जिस वोट से उन्होंने प्रधानमंत्री चुना है सायद आज वही वोट किसी बाहुबली या नाकारा उम्मीदवार को देने की मजबूरी आ खड़ी हो गयी हो प्रधानमंत्री जी की चुनावी रैली से ।
अगर उस प्रान्त की जनता प्रधानमंत्री के चुनावी वादों के इतर किसी अन्य दल को चुनती है तो कहीं ना कहीं जनता का प्रधानमंत्री से अविस्वास पैदा होता है जिसका सीधा अर्थ है कि प्रान्त की जनता का प्रधानमंत्री में विस्वास नही रहा और वो उसको भी एक सामान्य नेता की तरह मानकर उसको देश का नेतृत्वकर्ता नही मान रहे हैं। अतः इस आधार पर प्रधानमंत्री का प्रत्यक्ष तौर पर प्रान्तिय जनता द्वारा निरादर है और उसके नेतृत्व में अविस्वास भी।
अतः इन सभी आधारों पर देखते हुए प्रधानमंत्री एवं उसकी सरकार के कैबिनेट मंत्रियों को प्रान्तों के चुनावो में चुनावी प्रचार नही करना चाहिए इससे एक तरफ तो पूर्ण निष्पक्ष चुनाव होने की प्रक्रिया ज्यादा अच्छी होगी और दूसरी तरफ 5 साल तक देश की समस्त जनता का सार्वजनिक एवं असार्वजनिक तौर पर प्रधानमंत्री एवं उसकी सरकार में विस्वास बना रहेगा ।
साथ ही इस प्रक्रिया से यह भी सुनिश्चित होगा कि किसी दल का अध्यक्ष कोई केबिनेट पद ग्रहण नही करेगा और जिसके अलग होकर वह पूर्ण रूप से अपने दल के लिए अपना बहुमूल्य योगदान भी दे सकेगा।

# इसलिए यह संवैधानिक उपबंध किया जाना चाहिए कि कोई भी प्रधानमंत्री और उसका केबिनेट मंत्री अपने कार्यकाल के दौरान किसी भी प्रकार के चुनाव में जनता को संबोधित नही करेंगे #
# हाँ अन्य मंत्री ऐसा करने के लिए स्वतंत्र होने चाहिए #

हो सकता मेरा सुझाव पूर्णतः सत्य एवं सटीक ना हो किन्तु आंसिक तौर पर जरूर ठीक है। अगर देश का विकास करना है और लोकतंत्र को मजबूत करना है तो देश की जनता को उन पहलुओ पर भी विचार करना होगा जिससे लोकतंत्र की कमियों को दूर किया जा सके क्योकि लोकतान्त्रिक विचार कोई स्थिर विचार नही बल्कि समय के अनुसार जनता की इक्षा के अनुसार परिवर्तनशील है।

Language: Hindi
Tag: लेख
3 Comments · 156 Views
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