वेदना
वेदना……
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पंडित हू मैं वेद पढने आया था
वेदनाएं पढने लगा
वेदनाएं समाजिक कुप्रथा की
मेधावी के हार्दिक व्यथा की
वेदनाएं नैतिकता के पतन की
भ्रष्टाचार पीडित वतन की
वेदनाएं मेधावी के मनोदशा की
राष्ट्र में बीगड़ते शिक्षा के दशा की
वेदनाएं नारी पे होते अत्याचार की
बेटियों के लिए घटते प्यार की
वेदनाएं पढने लगा मैं
बृद्धाश्रम में बिलखते माँ बाप की
परिवारिक विघटन रूपी श्राप की
वेदनाएं माँ बाप के निस्वार्थ त्याग की
बच्चों द्वारा मात पिता के परित्याग की
वेदनाएं महंगाई के मार की
राजनैतिक तैल तैल के धार की
वेदनाएं विलुप्त होते संस्कार की
सिमटते समाजिक सद्भाव की
पढने लगा मैं
वेदनाएं रिश्तों में बढते टूट की
गैरवाजिब समाजिक छूआछूत की
वेदनाएं रोटी , कपड़ा, मकान की
गरीबों पर होते हर दिन अन्याय की
वेदनाएं मित्रों के बीच बढते दूरी की
स्वार्थी पूर्ति वास्ते मित्रता के मजबूरी की
वेदनाएं सब कुछ देखकर भी जीवन जीने की
सब कुछ जानते हुए विष का घूंट पीने की
वाकई वेदनाएं पढने लगा हूँ
मैं वेद की जगह।
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©®पं.संजीव शुक्ल “सचिन”