Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
17 Jul 2017 · 3 min read

‘विश्वास’ (लघुकथा)

बस भाई …ज्यादा नही….
“अरे यार क्या बात कर रहा हैं.. एक पैग और ..मेरा भाई हैं एक पैग और मारेगा.. ये मारा…ये मारा… हां हा हा .. ये हुई ना बात।”

“यार रोनित ये साला विवेक कहा मर गया?”

“हा हा हा.. वो…देख कोने में बैठा है..अभी बुलाता हूँ…”
विवेक दूर बैठा अपने दोस्तों की एक एक बात सुन रहा था। रोनित के आग्रह पर वह उनके पास आकर बैठ गया।

“देख बे विवेक आज तो तुझे थोड़ी सी पीनी ही पड़ेगी.. मार ले यार एक पैग ह्म्म्म.. मारले भाई…..”

“पर मैं पीता नहीं हूँ तुम्हे तो पता है।” विवेक ने हल्का सा हँसकर कहा।

“भाई देख येे पार्टी वगेरा रोज़ तो होती नही.. यारों की महफ़िल रोज़ तो लगती नही। कुछ नही होता भाई । देख भाई मूड फ्रेश कर ले..”

पास बैठे प्रवीण ने भी हां में हां मिलाई। “देख भाई आजकल के ज़माने को देख। जो ये सब नही करता। साला अलग थलग हो जाता है..सोसाइटी में रहना सीखो यार..ज़माने के साथ बदलो ख़ुद को..
देख हमें देख ऐश कर रहे हैं ऐश.. और तू..साला संस्कारो की पोटली.. हा हा हा……”

सारे दोस्त ठहाके मारकर है रहे थे।

“देख विवेक कभी कभी पीने से कुछ नही होता भाई। वो तो जो रोज़ पीते है उनके लिए बुरा है। आजा भाई आजा.. आज हो जाये फिर… मर्द बन ..मर्द समझा. ये कब तक इन चीजों से दूर भागेगा हम्म. कुछ नही होगा..अब मेरा दोस्त ये गिलास उठाएगा तुम देखना..”

परेश ने बड़े ही समझदारी वाले ढंग से अपनी बात कह डाली थी।

अभी तक विवेक ने ऐसी किसी भी चीज़ को छुआ तक नही था। अचानक विवेक का हाथ गिलास की और बढ़ चला.. सोचा..आज तो पीकर ही रहूँगा. मैं भी बनूँगा एक अच्छे स्टेटस वाला आदमी.. गिलास हाथ में उठा लिया..मुँह से लगाया..

कि अगले ही पल उसके हाथ कांप उठे..जैसे बिजली का कोई तगड़ा झटका उसके शरीर को झन्ना गया था।अचानक एक यादों का कारवां उसकी आँखों के सामने दौड़ने लगा.. अचानक माँ का आँचल उसकी आँखों के आगे घूम गया। बचपन में हर रोज़ 2 रूपए बचाकर वह विवेक को देती थी..की एक दिन पढ़ लिख कर अच्छा आदमी बन जाये..घूम गया माँ का वो भूखा चेहरा ..जो कई बार खुद भूखी रहकर अपना हिस्सा उसे खिला देती थी..पिता की मजदूरी..थकान भरा चेहरा.. पेट काटकर विवेक को पढ़ाना.. बचपन की गरीबी..अभाव.. जिल्लत ..अपमान.. माँ बाप की अधूरी चाहतें.. शहर में कमाने के लिए जाते विवेक को विदा करते हुए माँ बाप के असहाय और निरीह आंसू..
बेटा हमारा विश्वास ना तोडना.. . हम तेरी राह तकेंगे..

कांच का गिलास विवेक के हाथ से छूटकर जमीन पे जा गिरा था.. सारी शराब बिखर गई थी..विवेक थर थर काँप रहा था..

“साला इसके बसकी कुछ नहीं हैं..आगे से बुलाओ ही मत साले को” विवेक के दोस्त गालियां दे रहे थे..

विवेक हाँफता हुआ बाहर की और भागा जा रहा था..
माँ ……बाबा…….आपका विश्वास कभी न तोडूंगा.. हां कभी ना तोडूंगा.. उसके आंसुओ से जैसे सही मायने में आज उसकी गरीबी धुल रही थी.. .
————————————————————
– नीरज चौहान की कलम से.. .
लिखित: 5 -3-2017
‘विश्वास’ (काव्यकर्म से अनवरत)

Language: Hindi
960 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी
हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी
Mukesh Kumar Sonkar
अरमान
अरमान
Kanchan Khanna
■ संडे इज द फन-डे
■ संडे इज द फन-डे
*Author प्रणय प्रभात*
गाय
गाय
Vedha Singh
चातक तो कहता रहा, बस अम्बर से आस।
चातक तो कहता रहा, बस अम्बर से आस।
Suryakant Dwivedi
बेटी नहीं उपहार हैं खुशियों का संसार हैं
बेटी नहीं उपहार हैं खुशियों का संसार हैं
Shyamsingh Lodhi (Tejpuriya)
मन को भाये इमली. खट्टा मीठा डकार आये
मन को भाये इमली. खट्टा मीठा डकार आये
Ranjeet kumar patre
आप वक्त को थोड़ा वक्त दीजिए वह आपका वक्त बदल देगा ।।
आप वक्त को थोड़ा वक्त दीजिए वह आपका वक्त बदल देगा ।।
लोकेश शर्मा 'अवस्थी'
महाड़ सत्याग्रह
महाड़ सत्याग्रह
Shekhar Chandra Mitra
ताल्लुक अगर हो तो रूह
ताल्लुक अगर हो तो रूह
Vishal babu (vishu)
जो जी में आए कहें, बोलें बोल कुबोल।
जो जी में आए कहें, बोलें बोल कुबोल।
डॉ.सीमा अग्रवाल
मोदी जी
मोदी जी
Shivkumar Bilagrami
शोषण खुलकर हो रहा, ठेकेदार के अधीन।
शोषण खुलकर हो रहा, ठेकेदार के अधीन।
Anil chobisa
प्यासा के कुंडलियां (झूठा)
प्यासा के कुंडलियां (झूठा)
Vijay kumar Pandey
ज़िंदगीभर का साथ
ज़िंदगीभर का साथ
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
عيشُ عشرت کے مکاں
عيشُ عشرت کے مکاں
अरशद रसूल बदायूंनी
अंधकार जितना अधिक होगा प्रकाश का प्रभाव भी उसमें उतना गहरा औ
अंधकार जितना अधिक होगा प्रकाश का प्रभाव भी उसमें उतना गहरा औ
Rj Anand Prajapati
ग़ज़ल की नक़ल नहीं है तेवरी + रमेशराज
ग़ज़ल की नक़ल नहीं है तेवरी + रमेशराज
कवि रमेशराज
एक शख्स
एक शख्स
रोहताश वर्मा 'मुसाफिर'
जीवन में
जीवन में
Dr fauzia Naseem shad
गीतिका
गीतिका
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
"मनुष्य"
Dr. Kishan tandon kranti
3111.*पूर्णिका*
3111.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
निरापद  (कुंडलिया)*
निरापद (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
विचार
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
तेरी जुस्तुजू
तेरी जुस्तुजू
Shyam Sundar Subramanian
ख्वाहिशों का टूटता हुआ मंजर....
ख्वाहिशों का टूटता हुआ मंजर....
Jyoti Khari
ख्वाहिशे  तो ताउम्र रहेगी
ख्वाहिशे तो ताउम्र रहेगी
Harminder Kaur
बूझो तो जानें (मुक्तक)
बूझो तो जानें (मुक्तक)
पंकज कुमार कर्ण
चाहता है जो
चाहता है जो
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
Loading...