विलुप्त होती गौरैया
शुभ प्रभात * सादर नमन
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विलुप्त होती गौरैया
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एक जमाना था प्यारी गौरैये का!!
हर गली में फसाना है गौरैये का!!
ओ आती रही दिल लुभाती रही,
चहचहाती रही मन को भाती रही,
ओ फुदकती रही घर मुंडेर पर
झरोखों में घोसला बनाती रही!
कितने प्यारेथे बच्चे उस गौरैये का!!
हर गली में फसाना है गौरैये का!!
घर की मुंडेर अब तो रहे जो नहीं
मस्त मौसम भी अब रहे जो नहीं
नाच प्यारी दिखाये चिरैया मेरी
किन्तु वैसा जमाना रहा अब नहीं
नाच आखों को भाते थे गौरैये का!!
हर गली में फसाना है गौरैये का!!
अब न जाने कहाँ खो गई आज वो
गुमशुदी को कही भा गई आज वो
आज आंगन से अपने गायब हुई
क्याकहूँ किसजहां खोगई आजवो
मन इंतजार रत प्यारी गौरैये का!!
हर गली में फसाना है गौरैये का!!
युग कलपुर्जे का कैसा भारी हुआ
गौरैया के जीवन को हानि हुआ
जब से आया मोबाइल टावर यहाँ
उस चिरैया पे कैसे यह भारी हुआ
छूट रहा साथ जग से गौरये का!
हर गली में फसाना है गौरैये का!!
अबचलो हमसभी मिल बचाये उसे
प्रेम अपना अभी भी दिखायें उसे
वृक्ष फिर से धरा पर लगाकर सभी
जग को सुन्दर बनाये बुलाये उसे
दें जगह अपने जीवन में गौरये का!!
हर गली में फसाना है गौरैये का!!
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पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण
बिहार….८४५४५५