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20 Jul 2019 · 1 min read

विरह-3

तन्हा सा
आधा अधूरा
मेरे फलक का चांद
मुँह छुपाए हुए

नजरें उठी एक
बेसाख्ता हंसी के साथ
उसे हाले शरीक देख कर
काली घटा के साये
परेशां सोचों की तरह
समा लेते हैं
उसकी सारी रोशनी
और गुम होने से पहले
एक शफ्फाक लकीर
खो गयी आगोश में
हाथ हिलाते हुए

मुँह फेर कर
तुझे ख्वाबों में
छूने की कोशिश में
बहलता मैं
खो गया
उतार कर चेहरे
की शिकन

अभी पलकें उनींदी थी
और तुझसे गुफ्तगू जारी
चल पड़ा भोर का तारा
छिटक कर ओंस की बूंदें

खुली आँखों में
बिखरी ख्वाबों की किरचें
छलक कर टूटने लगती हैं
पलकों की कोरों से

रोकना चाहा जो
बंद आंखों में
तो चुभ कर कहा
बहुत हो गया जनाब
अब छोड़िये भी

तन्हा सा
आधा अधूरा
रातों के इंतजार में

Language: Hindi
3 Likes · 227 Views
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