विरह की रात
यह रात हुई आधी से अधिक
पर इन आँखों में नीन्द नहीं।
ये रात यही ऐसे तू ठहर
तेरे पदचापों में वो बात नहीं।
इन नयनो में जो आश पले
तेरे स्वप्नो में वो आश नहीं।
वो आश नहीं, वो बात नहीं
कोई मिलन भरी सौगात नहीं।
ना जीवन का कोई संदेशा
नहीं मृत्यु का पैगाम कोई।
कब तक मन यू ही तडपेगा
मेरे प्रियतम का संदेश नहीं।
एक चाहत थी मिलने की उन्हें
तेरे सपनों में मेहबूब नहीं।
बीन स्वप्न रहीत सूनी राते
कोई सुकून भरी सौगात नहीं।
……….
©®पं.सचिन शुक्ल