Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
10 Dec 2020 · 6 min read

विद्यार्थियों के चारित्रिक और मानसिक विकास में शिक्षक की भूमिका।

विषय- विद्यार्थियों के चारित्रिक और मानसिक विकास में शिक्षक की भूमिका।

विधा -आलेख

विद्यार्थियों के शारीरिक और मानसिक विकास में शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। शिक्षक का अर्थ है। शिक्षा प्रदान करने वाला, अर्थात गुरु। सर्व प्रथम हम गुरु शब्द के विश्लेषण के पश्चात ,गुरुओं के प्रकार पर भी विस्तृत चर्चा करेंगे ।
गुरु हमारे जीवन के प्रत्येक सोपान पर मार्गदर्शक बनकर खड़ा होता है।

” गु “शब्द का अर्थ है अंधकार, अज्ञान और” रू” शब्द का अर्थ है प्रकाश, ज्ञान।
अज्ञान को नष्ट करने वाला जो ब्रह्म रूप प्रकाश है वह गुरु है। इसमें कोई संशय नहीं है। (गुरु गीता 33 )

“गु कार”अंधकार है, और उसको दूर करने वाला” रू कार “है।अज्ञान रूपी अंधकार को नष्ट करने के कारण ही गुरु कहलाते हैं ।(गुरु गीता 34)

“गु कार” से गुणातीत कहा जाता है, और “रु कार” से रूपातीत कहा जाता है। गुण और रूप से परे होने के कारण ही गुरु कहलाते हैं।( गुरु गीता 35 )

गुरु गीता में भगवान शिव और पार्वती का संवाद है, गुरु गीता में ऐसे सभी गुरुओं का कथन है ,जिनको सूचक गुरु, वाचक गुरु ,बोधक गुरु, निषिद्ध गुरु ,विहित गुरु, कारणाख्य गुरू अथवा परम गुरु कहा गया है ।

गुरु गीता एक हिंदू ग्रंथ है ,जिसके रचयिता वेदव्यास हैं। ।वास्तव में यह स्कंद पुराण का एक भाग है। (श्लोक163 से 169) ।
बुद्धिमान मनुष्य को स्वयं योग्य विचार करके तत्व निष्ठ सद्गुरु की शरण लेनी चाहिए ।

सूचक गुरु – वाह्यलौकिक शास्त्रों का जिसको अभ्यास है। वर्ण अक्षरों को सिद्ध करने वाला वह गुरु सूचक गुरु कहलाता है।
वाचक गुरु- धर्माधर्म का विधान करने वाला वर्ण और आश्रम के अनुसार विधा का प्रवचन करने वाले गुरु को वाचक गुरु कहते हैं ।

बोधक गुरु- पंचाक्षरी आदि मंत्रों का उपदेश देने वाले गुरु बोधकगुरु कहलाते हैं। प्रथम दो प्रकार के गुरु से यह गुरु उत्तम है ।

निषिद्ध गुरु- मोहन मारण, वशीकरण आदि मंत्रों को बताने वाले को गुरु को तत्वदर्शी पंडित, निषिद्ध गुरु कहते हैं।

विहित गुरू- संसार अनित्य और दुखों का घर है ,ऐसा समझ तो जो गुरु वैराग्य का मार्ग बताते हैं, विहितगुरु कहलाते हैं।

कारणाख्य गुरु –तत्वमासी आदि महा वाक्यों का उपदेश देने वाले तथा संसार से रोगों का निवारण करने वाले गुरु कारणाख्य गुरु कहलाते हैं।

शिक्षक शब्द की व्याख्या और भी महत्वपूर्ण है।
शिक्षक का” शि “अर्थात जो सत्य और सौंदर्य के बीच सेतु की भूमिका में स्थापित हो।
“क्ष” – क्ष का तात्पर्य जो योग क्षेम वहाम्यहम् के संचित संसिद्धि के क्षरण का संरक्षण करने की क्षमता रखता हो।

“क” जिसका अर्थ कर्मण्येवाधिकारस्ते के कर्म भाव के एक निष्ठ संकल्प से अनुप्राणित करने की प्रेरणा भर देना है ।

अर्थातआदर्श शिक्षक वही शिक्षक है ,जो ,विद्यार्थियों का चारित्रिक या नैतिक व मानसिक विकास में सहायक हो। शिक्षक की भूमिका को केवल विद्यालय तक सीमित नहीं किया जा सकता। बच्चों के प्रारंभिक शिक्षक माता-पिता होते हैं ।यह बच्चों को शुभ संस्कारों ,आचार -विचार से परिचित कराते हैं। बच्चों का प्रथम विद्यालय गृह होता है। माता-पिता बच्चों की रुचि -अरुचि, दैनिक क्रियाकलापों, बौद्धिक क्षमता ,शारीरिक व मानसिक क्षमता का आकलन बचपन में किया करते हैं। यह बच्चों के सर्वांगीण विकास में सहायक होता है ।बच्चों का स्वावलंबी होना, समय का सदुपयोग करना ,अनुशासित होना ,क्रीड़ा व मनोरंजन हेतु समय निकालना इन्हें मानसिक व नैतिक रूप से सक्षम बनाता है ।बच्चों में सकारात्मक विचारों का विकास, माता-पिता व घर के वातावरण द्वारा होता है। यह मानसिक विकास का प्रथम सोपान है ।घर का वातावरण, माता-पिता का आचरण, बच्चों के मानसिक विकास व नैतिक विकास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। बच्चों की सफलता और विफलता के पीछे इन्हीं संस्कारों का हाथ होता है। जब बच्चे विद्यालय में प्रवेश करते हैं,तो, प्रथम भेंट “सूचक गुरु” से होती है।

“विद्यार्थियों का चारित्रिक व मानसिक विकास में शिक्षक की भूमिका।”

आदर्श विद्यार्थी में “पांच लक्षण” होने चाहिये।

“काक चेष्टा वको ध्यानम,
स्वान निद्रा तथैव च।
अल्पाहारी, गृहत्यागी
विद्यार्थी पंच लक्षणं।।”

विद्यार्थियों की चारित्रिक विकास हेतु कहा गया है ,

“धन गया तो कुछ नहीं गया।
स्वास्थ्य गया तो कुछ गया ।
चरित्र गया, तो ,सब कुछ गया,
कुछ बचा नहीं।”

अर्थात यदि विद्यार्थी जीवन में चरित्र निर्माण हो गया ,तो, धन वैभव व स्वास्थ्य में वृद्धि होती है।

विद्यार्थियों के चरित्र निर्माण का द्वितीय सोपान है

“समय का सदुपयोग ”

कहा गया है, समय धन के समान है। अंग्रेजी में यह मुहावरा इस प्रकार है।

“टाइम इज मनी ”

अतः विद्यार्थियों को समय का सदुपयोग भरपूर करना चाहिए। शिक्षक का उत्तरदायित्व है, कि ,छात्रों को समय सारणी के अनुसार जीवन शैली का पालन करने हेतु प्रेरित करें।

“विनम्रता”-

विनम्रता छात्रों का आभूषण है, यह विद्यार्थियों की उन्नति में सहायक है। विनम्रता ,मित्रों ,वृद्धजनों एवं परिवार में सम्मानजनक स्थान प्रदान करती है। त्रुटियोंको अनदेखा करने में सहायता प्रदान करती है।

संस्कृत भाषा में एक श्लोक है,

” विद्या ददाति विनयम, विनयाद् याति पात्रताम् ।
पात्रत्वां धन माप्नोति , धनात धर्म :तत: सुखम ।।”

अर्थात विद्या विनय देती है विनय से पात्रता, पात्रता से धन ,धन से धर्म, और धर्म से सुख प्राप्त होता है ।

“स्वाध्यायी-”
छात्रों को निरंतर अध्ययन शील होना चाहिए। शिक्षक का उत्तर दायित्व है कि ,छात्रों की संशयात्मक बुद्धि को निश्चयात्मक बुद्धि में परिवर्तित करने में सहायक सिद्ध हो।

” नेतृत्व क्षमता का विकास”

छात्रों में निर्णय लेने की क्षमता का विकास प्रारंभ से करना चाहिए। जिससे वे संकट के क्षणों में उचित निर्णय कर सके ।छात्रों की प्रतिभा का मूल्यांकन उनके विवेक द्वारा करना आवश्यक है ।स्वविवेक द्वारा छात्र अपना हानि- लाभ ,सुख-दुख व्यक्तिगत ,पारिवारिक ,सामाजिक व देश हित में निर्णय कर सकते हैं। शिक्षकों को छात्रों में स्वविवेक जागृत करना चाहिए। यह उन्हें मानसिक व नैतिक रूप से दृढ़ता प्रदान करता है।

“स्वास्थ्य ”

स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है ।अतः शिक्षकों का दायित्व है कि छात्रों का न केवल मानसिक विकास करें ,खेलकूद के द्वारा शारीरिक विकास पर ध्यान दें।
क्रीडा मानसिक थकान को कम करती है ,स्वास्थ्य प्रदान करती है, जो, शारीरिक स्फूर्ति के लिए ,तीव्र मेधा शक्ति के लिए अत्यंत आवश्यक है। स्वस्थ शरीर में प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है ,और ,छात्रों को व्याधियों से दूर रखता है ।अतः शिक्षकों को छात्रों को सर्वांगीण विकास हेतु प्रेरित कर्म करते रहना चाहिए।

अंग्रेजी में एक मुहावरा है ,

“ऑल वर्क एंड नो प्ले मेक्स जैक ए डल बॉय ”

“जिज्ञासा का विकास-”

विद्यार्थियों के मानसिक विकास हेतु शिक्षकों को विद्यार्थियों की जिज्ञासा को निरंतर जागृत करना चाहिए, व उनका प्रश्नों का उचित समाधान प्रस्तुत करना चाहिए। एक जिज्ञासु विद्यार्थी ना केवल अपने स्वजनों, गुरुजनों व विद्यालय का नाम रोशन करता है, बल्कि ,गुरुजनों के मानस पटल पर चिर स्थाई स्मृति छोड़ता है ।
शिक्षकों को भी जिज्ञासु व शोध परक होना चाहिए ,जिससे छात्रों की जिज्ञासा का समाधान नित्य नवीन प्रकार से किया जा सके। मानसिक विकास में जिज्ञासा का महत्वपूर्ण स्थान है ।प्रश्नों का उत्तर खोजने की लगन छात्रों को वैज्ञानिक बनाती है। उत्तर प्राप्त करने की इच्छा शक्ति जिज्ञासा को शांत करती है।

” कर्मठता ”

अतः छात्रों में में लगन शीलता के साथ-साथ कर्मठता का विकास करना चाहिए। कर्मठ छात्र अपने मेहनत के बल पर अपने लक्ष्य को प्राप्त करता है ।छात्रों के मानसिक विकास हेतु शिक्षकों को अपने अध्ययन व शिक्षण में निरंतरता लानी चाहिए ।स्वाध्याय छात्रों को स्वावलंबी व विद्वान बनाता है। इससे मेधा प्रखर होती है।

मेरे विचार से मेधावी छात्र के मानसिक विकास की मुख्य तीन श्रेणियां हैं ,

प्रथम श्रेणी उन विद्यार्थियों की है, जो, एक बार में समझ लेते हैं ।यह छात्र “विवेकानंद” की श्रेणी में आते हैं ।

जो छात्र दो बार में समझ पाते हैं , वे छात्र “दयानंद “की श्रेणी में आते हैं।

और जो छात्र तीन बार में समझ पाते हैं ,वह विद्यार्थी “आनंद “की श्रेणी में आते हैं।

अतः शिक्षकों को विद्यार्थियों का शिक्षण करते समय उपरोक्त श्रेणियों का ध्यान रखना चाहिए। जिससे विद्यार्थियों का चारित्रिक व मानसिक विकास सर्वांगीण रूप से हो सके।

” अनुशासन ”

छात्र जीवन में अनुशासन अत्यंत आवश्यक है ।माता-पिता ,गुरुजनों वृद्धजनों के आदेश का पालन, नियमित जीवन शैली ,अध्ययन, स्वाध्याय व क्रीड़ा हेतु समस्त मित्र- सहपाठियों से समन्वय स्थापित करते हुए मैत्री भाव से व्यवहार करना परम आवश्यक है।

सत्य निष्ठा ,देशभक्ति में शिक्षक की भूमिका विद्यार्थी को सत्य निष्ठ एवं देशभक्त बनाने की होती है। इससे छात्र का नैतिक चरित्र उन्नत होता है।

यह सफलता का व चारित्रिक विकास का महत्वपूर्ण सोपान है ।

बचपन से शिशु की मेधा शक्ति व रूचि पहचान कर शिक्षित करने की आवश्यकता है, जिससे भविष्य के इन कर्णधारों को सु संस्कारी ,स चरित्रवान ,स्वावलंबी व शोध परक बनाया जा सके ।

लेखक-
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव ,

वरिष्ठ परामर्शदाता ,प्रभारी ब्लड बैंक,

जिला चिकित्सालय ,सीतापुर।
261001(पिन)
मोब,9450022526

Language: Hindi
Tag: लेख
2061 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
View all
You may also like:
बदनाम होने के लिए
बदनाम होने के लिए
Shivkumar Bilagrami
ग़ज़ल सगीर
ग़ज़ल सगीर
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
पूर्वोत्तर का दर्द ( कहानी संग्रह) समीक्षा
पूर्वोत्तर का दर्द ( कहानी संग्रह) समीक्षा
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
खुदा जाने
खुदा जाने
Dr.Priya Soni Khare
जीवन रंगों से रंगा रहे
जीवन रंगों से रंगा रहे
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
ज़ब तक धर्मों मे पाप धोने की व्यवस्था है
ज़ब तक धर्मों मे पाप धोने की व्यवस्था है
शेखर सिंह
राम लला
राम लला
Satyaveer vaishnav
बज्जिका के पहिला कवि ताले राम
बज्जिका के पहिला कवि ताले राम
Udaya Narayan Singh
चली पुजारन...
चली पुजारन...
डॉ.सीमा अग्रवाल
“जिंदगी की राह ”
“जिंदगी की राह ”
Yogendra Chaturwedi
जीवन में जब विश्वास मर जाता है तो समझ लीजिए
जीवन में जब विश्वास मर जाता है तो समझ लीजिए
प्रेमदास वसु सुरेखा
गुजरा वक्त।
गुजरा वक्त।
Taj Mohammad
" मेरे प्यारे बच्चे "
Dr Meenu Poonia
मेरे जीने की एक वजह
मेरे जीने की एक वजह
Dr fauzia Naseem shad
बगुले तटिनी तीर से,
बगुले तटिनी तीर से,
sushil sarna
"फोटोग्राफी"
Dr. Kishan tandon kranti
ती सध्या काय करते
ती सध्या काय करते
Mandar Gangal
"प्यासा"मत घबराइए ,
Vijay kumar Pandey
कुछ लोग अच्छे होते है,
कुछ लोग अच्छे होते है,
Umender kumar
*कैसे भूले देश यह, तानाशाही-काल (कुंडलिया)*
*कैसे भूले देश यह, तानाशाही-काल (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
एक छोटा सा दर्द भी व्यक्ति के जीवन को रद्द कर सकता है एक साध
एक छोटा सा दर्द भी व्यक्ति के जीवन को रद्द कर सकता है एक साध
Rj Anand Prajapati
वसुधा में होगी जब हरियाली।
वसुधा में होगी जब हरियाली।
ओम प्रकाश श्रीवास्तव
तुम्ही ने दर्द दिया है,तुम्ही दवा देना
तुम्ही ने दर्द दिया है,तुम्ही दवा देना
Ram Krishan Rastogi
क्यूं हो शामिल ,प्यासों मैं हम भी //
क्यूं हो शामिल ,प्यासों मैं हम भी //
गुप्तरत्न
अपने आँसू
अपने आँसू
डॉ०छोटेलाल सिंह 'मनमीत'
सूरज दादा ड्यूटी पर
सूरज दादा ड्यूटी पर
डॉ. शिव लहरी
प्रार्थना
प्रार्थना
Dr.Pratibha Prakash
भारत चाँद पर छाया हैं…
भारत चाँद पर छाया हैं…
शांतिलाल सोनी
हिन्दी दोहा बिषय-ठसक
हिन्दी दोहा बिषय-ठसक
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
मेरी कलम से…
मेरी कलम से…
Anand Kumar
Loading...