*”विदाई”*
रीति रिवाजों का दस्तूर नेग ,
नियति का नियम बेटी होती पराई।
दुल्हन बन पिया संग ससुराल चली हो जाती है विदाई।
मेहंदी चूड़ियाँ पैरों में महावर लाल लाल।
मायका छोड़ सुसराल जाए सखियाँ करे बेहाल।
ससुराल दूजा घर पाए ,सास ससुर का प्यार दुलार मिले।
ननद समान बहन मिले ,भाई जैसा देवर मिले।
अनजान व्यक्ति के नए रिश्तेदारी निभाई।
दूर देश मे जाकर हर हाल में खुश रहे अब हो गई विदाई।
स्वप्न सजाये पिया संग अपने सगे संबंधियों को रोक न पाए।
मायका छूटा सहेली छूटी भाई बहनों का साथ निभा न पाए।
दोनों कुलों की लाज तारती दोनों घरों में खुशियाँ दे जाती।
धैर्य संयम मान सम्मान संस्कारों से घर को स्वर्ग बनाती।
आहिस्ता चल जिंदगी अभी कई कर्ज चुकाना बाकी है।
हसरतें ख्वाबों को सजाते हुए रूठे हुए को मनाना बाकी है।
रिश्ते बनते बिगड़ते जुड़ते हुए जीवन का सुखद आधार।
सौम्य सुसंस्कृति की धरोहर सेतु बन करती इसे पार।
रिश्तों का मायाजाल बिछाया हर फर्ज निभाना ही होगा।
सँस्कार की ओढ़नी ओढ़ मायके से ससुराल विदाई करना होगा।
सारे अरमान छोड़ कर रिश्ते नाते मायका छोड़ कर आ जाती।
सपनों को हकीकत का सामना कर बदल गया संसार।
हर पल जीना सीख लिया सबको अपनाकर मानकर।
इस जन्म का खेल नही ये जन्मों जन्म का बंधन है।
अपना पराया क्या जाने ये मन से मिलने का संगम है।
मायका छोड़ ससुराल पक्ष में घर द्वार स्वीकार।
सात कदम में ही सात जन्मों का रिश्ता अपनों का प्यार।
पास रहे या दूर रहे कहलाता मायका और ससुराल ।
सात समुंदर बाबुल ने भेजा रात दिन याद आये मन होवे बेहाल।
सपनों में जब मायका माँ की याद जब सताये आ जाये रूलाई।
पास ही रखना दूर न भेजना जब करनी होगी विदाई।
शशिकला व्यास✍️