विजात छंद
सुनो माँ प्रार्थना मेरी
न भटके भावना मेरी
रहूँ बचकर बुराई से
यही बस कामना मेरी
जो भी यादें पुरानी हैं
लगें जैसे कहानी हैं
खजाने से नहीं कुछ कम
समय की ये निशानी है
हरे है जख्म सब मेरे
दिए जो प्यार ने तेरे
दवाएं बेअसर अब सब
हमें अवसाद बस घेरे
अगर उपवन उजाड़ोगे
कहाँ से फूल पाओगे
न जग में बेटियां होंगी
जगत कैसे चलाओगे
हमारे दिल पे हैं गहरे
तमन्नाओं के ही पहरे
पता ये अनगिनत हैं पर
न दिल माने न ही ठहरे
इधर मौसम सुहाने है
उधर गम के फ़साने है
इसी का नाम है जीवन
हमें ये सब निभाने हैं
चले हम दूर जाएंगे
नहीं पर भूल पाएंगे
मगर हम जान देकर भी
किये वादें निभायेंगे
नया होगा पुराना भी
कहाँ अपना जमाना भी
करेंगे होड़ करके क्या
रहेगा कब ठिकाना भी
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद (उ प्र)