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8 Dec 2017 · 1 min read

“विचित्रा”

“विचित्रा”
झुँझला गई विचित्रा जब सरिता ने उसकी एक रचना पर अपनी अभिव्यक्ति कुछ इस प्रकार से कर दिया।
अरे विचित्रा, तुम्हारे भाव तो बड़े सुंदर हैं पर वर्तनी कौन दुरस्त करेगा, तनिक इस पर भी ध्यान दो बहना।
विचित्रा का पारा चढ़ गया और उसने नसीहत दे डाली, सरिता तुम अपने आप को समझती क्या हो, तुम्हें पता भी है मुझे कितने लाइक और कमेंट मिलते हैं। लोग मेरी रचनाओं के लिए इंतजार करते हैं और तुम गलती निकाल रही हो।अपनी रचनाओं से पूछो कोई पढ़ता भी है या नहीं।
अरे विचित्रा बहन आप तो नाराज हो गईं, धन्य मानो कि मैंने तुम्हें पढ़ा और जो हकीकत मिली उसे बता दिया। और हाँ इस भ्रम में न रहना कि तुम्हें कोई पढ़ता भी है, लोग रचनाओं को देखते भी नहीं हैं और लाइक करके वाह वाह लिख देते हैं।
अगर साहित्य में रुचि है तो हिंदी को हिंदी की तरह अपनाओं अन्यथा लिखना छोड़कर कुछ दिन और पठन कर लो, फिर देखना तुम्हें कितना सकून मिलता है। ये छंद, मात्राएँ, वर्तनी और प्रतीकात्मक भाव ही तो रचनाकार के श्रृंगार हैं और साहित्य का सृजन शिल्पकार का लक्ष्य है, कृपया इस पर प्रहार न करो मेरी प्यारी बहन, मैं भी तो अभी सीख ही रही हूँ क्या तुम मुझे कविता लिखना नहीं सिखाओगी।
विचित्रा नतमस्तक हो गई और सरिता के फोन की घंटी बज गई।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

Language: Hindi
513 Views
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