Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
6 Mar 2017 · 4 min read

विचार, संस्कार और रस [ दो ]

काव्य के रसतत्त्वों एवं उनके रसात्मकबोध को तय करने वाली समस्त प्रक्रिया का निर्माण कवि के संस्कारों द्वारा ही संपन्न होता है। संस्कारों के विभिन्न रूपों [ धार्मिक, सामाजिक, मानवतावादी, व्यक्तिवादी संस्कार ] में से एक कवि जिस प्रकार के वैचारिक मूल्यों द्वारा संस्कारित होता है, वह उन्हीं मूल्यों के अनुसार अपने परिवेश, अपने समाज के घटनाक्रमों, पात्रों आदि को काव्याभिव्यक्ति का विषय बनाता है। नारी के मादक स्वरूप पर अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देने वाले रीतिकालीन कवियों को नारी के नुकीले नयनों, रूप की चिलकचौंध, आलिंगन के समय कंपन, स्वेद आदि में जो आनंद की प्राप्ति होती है, यह आनंदातिरेक इन कवियों द्वारा नारी के प्रति अपनाई गई ऐसी मूल्यवत्त्ता से प्राप्त होता है, जिसकी वैचारिक अवधारणाएँ, नारी को भोग-विलास की वस्तु मानने में अंतर्निहित हैं। इसलिए यदि बिहारी नायिका के स्तन-मन-नैन नितंब में चंचलता और बढ़ोत्तरी देखते हैं तो यह अप्रत्याशित नहीं है। कारण स्पष्ट है कि बिहारी के संस्कार शृंगार के नाम पर नारी की नग्नता पर मोहित हैं और रति के नाम पर पलकों पर पीक लगाते हैं।
छायावादी कवि यदि काव्याभिव्यक्ति के माध्यम से नारी के कपोल चूमते-चूमते प्रसूनों, पल्लवों, दूब और जल को चूमने लग जाते हैं, तो यह उनके ऐसे व्यक्तिवादी संस्कारों के कारण होता है।
बिहारी-सतसई के अधिकांश स्थलों में बिहारी जिस प्रकार के रसात्मकबोध से सिक्त होकर, जिस प्रकार की रचनात्मक प्रक्रिया से गुजरते हैं, वह सारी-की-सारी प्रक्रिया यौनाकर्षण की प्रक्रिया है | यह रसदशा जिन मूल्यों या संस्कारों द्वारा उद्बुद्ध होती है, वह मूल्य नारी-भोग के ऐसे जीते-जागते नमूने हैं, जो वर्तमान में कवि द्वारा इस प्रकार अभिव्यक्ति पाते हैं-
फैल रही है परिधि स्तनों की
हसरतें अब जवान हैं
आओ दोस्तों और साथियो
आओ मेरे झंडे के नीचे।
उँगलियों से कह दो,
आज रियायत करें तनिक भी
किंतु पेश आएँ, मुनासिब बेरहमी से।
[ कु. शान्ता सिन्हा ]
लेकिन जिन कवियों के संस्कार नारी को भोग-विलास की मूल्यवत्ता से हटकर, नारी को स्वाभिमानी, संघर्षशील, पारिवारिक एवं सामाजिक दायित्वों का निर्वाह करने वाली नायिका के जीवन-मूल्यों से जोड़कर जाँचने, परखने या भोगने के रहे हैं, ऐसे कवि यदि नारी-आकर्षण से किसी प्रकार की रसदशा ग्रहण करते हैं तो वह रसदशा कुछ इस प्रकार की होती है-
हम घर के दरवाजे बनकर अब बेहद खुश हैं
प्यार मिला देता है हमको साँकल के स्वर में।’
उक्त उदाहरणों के माध्यम से जो बात स्पष्ट करनी है, वह सिर्फ इतनी-सी है कि एक कवि अपने परिवेश के प्रति जिस प्रकार की संस्कारित मूल्य-दृष्टि अपनाता है, वह मूल्य दृष्टि ही काव्य में रसात्मकता का विषय बनती है। आचार्य तुलसी जहाँ ब्राह्मणों, संतों, साधुओं आदि के हवन, पूजन गंगा-स्नान को गौरवशाली सत्योन्मुखी परंपरा का प्रतीक मानकार श्रद्धा और भक्ति जैसे रसात्मकबोध को जन्म देते हैं, वहीं कबीर को यह सारी-की-सारी परंपराएँ ढोंग, आडंबर, शोषण से युक्त विकृत रुढि़याँ नजर आती हैं। काव्य के स्तर पर रसात्मकता का यह अंतर निस्संदेह कबीर और तुलसी के मूल्यबोधें का अंतर है।
मूल्यबोध् और रस-संबंधी उक्त व्याख्या के अनुसार जो तथ्य उभरकर आते हैं, वह निम्न हैं-
1. किसी भी कवि द्वारा काव्य के सृजन की प्रक्रिया उसकी परिवेश के प्रति अपनायी गई संस्कारित मूल्य-दृष्टि के द्वारा ही संपन्न होती है।
2. कवि की मान्यताएँ, धारणाएँ, आस्थाएँ आदि ही उसके संस्कारों का स्वरूप हुआ करते हैं, जो उसके जीवन-मूल्य होते हैं।
3. किसी कवि में जिस प्रकार के संस्कार होते हैं, उस कवि में उन्हीं संस्कारों के अनुसार भाव, संचारीभाव, स्थायीभाव उद्बुद्ध हुआ करते हैं, जो अंततः उसकी सृजनात्मकता के माध्यम से पाठकों, श्रोताओं, दर्शकों के सामने आते हैं।
4. कवि के मन में संस्कार रूप में स्थायीभाव नहीं, मूल्य या विचार रहते हैं। कवि इन्हीं मूल्यों या विचारों के अनुसार विभिन्न प्रकार की भाव-अवस्थाएँ ग्रहण करता है। बात को थोड़ा स्पष्ट करने के लिए एक राष्ट्रीय मूल्यों को सर्वोपरि मानने वाले कवि की काव्याभिव्यक्ति इस प्रकार की होगी-
न चाहूँ मान दुनिया में, न चाहूँ स्वर्ग को जाना
मुझे वर दे यही माता रहूँ भारत पै दीवाना।
भवन में रोशनी मेरे रहे हिंदी चरागों की
स्वदेशी ही रहे बाजा बजाना, राग का गाना।
उक्त पंक्तियों में राष्ट्र के प्रति भक्ति का भाव कवि की राष्ट्र संबंधी उन वैचारिक अवधारणाओं द्वारा संपन्न हुआ है, जो अंग्रेजों की कुनीतियों, अत्याचारों, दमन, शोषण आदि का अनुभव करने पर राष्ट्र को आजाद कराने के लिए जन्मीं। राष्ट्र को आजाद कराने की यही वैचारिक अवधारणाएँ अंग्रेजी साम्राज्य से टक्कर लेने के लिए वतन पर जान कुर्बान कर देने की प्रेरणा जब कवि को देती हैं तो उसकी रचनात्मक अभिव्यक्ति पाठकों के समक्ष इस प्रकार आती है-
सरपफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है जोर कितना बाजू-ए-कातिल में है।
राष्ट्रीय-मूल्यों को सर्वोपरि मानने वाले कवि अमर क्रांतिकारी रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ जिस समय उक्त प्रकार के काव्यात्मक मूल्य राष्ट्र को प्रदान कर रहे थे, वह अंग्रेजों की भारतीयों पर लगातार किए जाने वाले अत्याचारों का समय था। उस समय जिन कवियों को राष्ट्र के इस सिसकते परिवेश से कुछ लेना-देना नहीं था, उनकी चेतना में नदी, झरनों, पहाड़ों, फूलों के प्रतीक और उपमान तैर रहे थे। ऐसे सारे-के-सारे कवि पृथ्वी के रूप में नारी के ऊपर झुके पुरुष जैसे लग रहे मेघों से भाव, संचारीभाव और स्थायीभाव ग्रहण कर रहे थे-
घिर आया नभ
उमड़ आये मेघ काले
भूमि के कंपित उरोजों पर झुका-सा
विशद् श्वांसाहत चिरातुर
छा गया इन्द्र का नील वक्ष।
-सावन मेघ, अज्ञेय
उपरोक्त उदाहरणों से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि ‘‘किसी भी साहित्यिक कृति का संबंध कृतिकार के व्यक्तित्व से है। कृतिकार का रागात्मक जीवन और उसके आधार पर निर्मित जीवन-दर्शन कृति में अनिवार्यतः प्रतिफलित होता है।’’
सन्दर्भ-
1. आस्था के चरण, डॉ. नगेन्द्र, पृष्ठ-80
———————————————————————
रमेशराज, 15/109, ईसानगर, अलीगढ़-202001

Language: Hindi
Tag: लेख
592 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
" बोलियाँ "
Dr. Kishan tandon kranti
मुझे आशीष दो, माँ
मुझे आशीष दो, माँ
Ghanshyam Poddar
"कुएं का मेंढक" होना भी
*Author प्रणय प्रभात*
जज़्बात-ए-दिल
जज़्बात-ए-दिल
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
ऐ वसुत्व अर्ज किया है....
ऐ वसुत्व अर्ज किया है....
प्रेमदास वसु सुरेखा
जब आपके आस पास सच बोलने वाले न बचे हों, तो समझिए आस पास जो भ
जब आपके आस पास सच बोलने वाले न बचे हों, तो समझिए आस पास जो भ
Sanjay ' शून्य'
कब तक यही कहे
कब तक यही कहे
मानक लाल मनु
मेरी हर आरजू में,तेरी ही ज़ुस्तज़ु है
मेरी हर आरजू में,तेरी ही ज़ुस्तज़ु है
Pramila sultan
*
*"कार्तिक मास"*
Shashi kala vyas
सफ़र
सफ़र
Shyam Sundar Subramanian
नव-निवेदन
नव-निवेदन
Jeewan Singh 'जीवनसवारो'
" यह जिंदगी क्या क्या कारनामे करवा रही है
कवि दीपक बवेजा
अपनी मर्ज़ी
अपनी मर्ज़ी
Dr fauzia Naseem shad
मां होती है
मां होती है
Seema gupta,Alwar
एक ही भूल
एक ही भूल
Mukesh Kumar Sonkar
पीड़ित करती न तलवार की धार उतनी जितनी शब्द की कटुता कर जाती
पीड़ित करती न तलवार की धार उतनी जितनी शब्द की कटुता कर जाती
Sukoon
हम कितने आजाद
हम कितने आजाद
लक्ष्मी सिंह
कर मुसाफिर सफर तू अपने जिंदगी  का,
कर मुसाफिर सफर तू अपने जिंदगी का,
Yogendra Chaturwedi
तुम्हें लिखना आसान है
तुम्हें लिखना आसान है
Manoj Mahato
अगर उठ गए ये कदम तो चलना भी जरुरी है
अगर उठ गए ये कदम तो चलना भी जरुरी है
'अशांत' शेखर
I want to tell you something–
I want to tell you something–
पूर्वार्थ
मिट्टी के परिधान सब,
मिट्टी के परिधान सब,
sushil sarna
Not longing for prince who will give you taj after your death
Not longing for prince who will give you taj after your death
Ankita Patel
चुनौतियाँ बहुत आयी है,
चुनौतियाँ बहुत आयी है,
Dr. Man Mohan Krishna
तेरे पास आए माँ तेरे पास आए
तेरे पास आए माँ तेरे पास आए
Basant Bhagawan Roy
ज़रा पढ़ना ग़ज़ल
ज़रा पढ़ना ग़ज़ल
Surinder blackpen
कुश्ती दंगल
कुश्ती दंगल
मनोज कर्ण
ग़ज़ल
ग़ज़ल
Shweta Soni
शाम उषा की लाली
शाम उषा की लाली
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
- मोहब्बत महंगी और फरेब धोखे सस्ते हो गए -
- मोहब्बत महंगी और फरेब धोखे सस्ते हो गए -
bharat gehlot
Loading...