वायरस और कोरोना वायरस के कुछ रोचक तथ्य
वायरस ( विषाणु ) :-
विषाणु का शाब्दिक अर्थ होता है विष या जहर । विषाणु का सर्वप्रथम पता रूस के वैज्ञानिक दिमित्री एवनोवस्की ने लगाया था। वास्तव में विषाणु एक आनुवंशिक (जेनेटिक) पदार्थ होता है ,जो आनुवंशिक पदार्थ एम.आर.एन.ए(mRNA) या डी.एन.ए(DNA) से मिलकर बना होता है साथ ही इसके ऊपर प्रोटीन की परत चढ़ी होती है, इसी प्रोटीन के द्वारा ही वायरस शरीर की कोशिका में प्रवेश करता है। यह अकोशकीय होता है अर्थात इसमे कोशिका नही होती जबकि बैक्टीरिया में कोशिका होती है। इसलिए बैक्टीरिया जहाँ सामान्य से सूक्ष्मदर्शी से दिख जाता है वहीं वायरस को देखने के लिए इलेक्ट्रान सूक्ष्मदर्शी की जरूरत होती है । वायरस का कोई निश्चित आकार नही होता यह किसी भी आकार का हो सकता है।
विषाणु सामान्य अवस्था मे अक्रिय होता है किन्तु जब किसी भी जीवित व्यक्ति,जानवर,पक्षी या पेड़-पौधों के सम्पर्क में आता है तो यह स्वयं की जीवित कर लेता है और अगर जीवित जीव ना मिले तो यह हजारों-लाखों वर्षों तक शुशुप्त अवस्था में रहता है, जिसे एक प्रकार से मृत अवस्था भी कहते है।
विषाणु के जीवित होने का अर्थ है कि विषाणु ने अपनी वंश वृद्धि शूरु कर दी है अर्थात प्रजनन प्रारम्भ कर दिया है। जैसे ही विषाणु किसी जीवित जीव के सम्पर्क में आता है यह तुरन्त सक्रिय होकर अपना जीवन प्रारम्भ कर वंश बृद्धि या प्रजनन प्रारम्भ करता है। अगर किसी जीव के शरीर की प्रतिरक्षा(इम्म्युन सिस्टम) प्रारणी शक्तिशाली नही है तो यह उस जीव में वंश बृद्धि कर जीव को बीमार कर देता है, और अगर प्रतिरक्षा प्रणाली शक्तिशाली है तो इम्मयून सिस्टम से बनने बाली एन्टीबॉडी इसे शरीर के अंदर समाप्त कर देती है ।
विषाणु शरीर के अंदर पहुंचकर जीव की कोशिका के अंदर प्रवेश करता है और कोशिका के केन्द्रक में स्थित जेनेटिक पदार्थ, mRNA या DNA से सम्पर्क कर उसका एक प्रकार से अपहरण कर लेता है । जैसे ही यह इनका अपहरण करता है वैसे ही यह तुरन्त अपना जेनेटिक पदार्थ उनमें स्थापित कर देता है जिसके आधार पर यह कोशिका को आदेश देता है कि मेरे जैसे और जीव बनाये जाय , और कोशिका दिग्भ्रमित होकर विषाणु का उत्पादन शुरू कर देती है या एक प्रकार से विषाणु अपनी वंश बृद्धि करने लगता है और यह कुछ ही समय मे यह लाखों-करोड़ों अपनी संतान पैदा कर देता है और फिर वह संतान भी वंश बृद्धि में लग जाती है और वो भी लाखों-करोड़ों-अरबो की संख्या में अपनी वंश बृद्धि करती है। इस वंश बृद्धि के साथ ही सभी वायरस अपनी दैनिक क्रिया शुरू करते है स्वयं को जीवित रखने की ,जिससे जीव बीमार होना शुरू हो जाता है ।
किसी भी जीवित जीव की आनुवंशिक सूत्र mRNA और DNA होते है। यह सूत्र इसलिए होते है क्योंकि यही वो इकाई होते है जिनसे किसी जीव के शारीरिक लक्षण( भौतिक लक्षण और मानसिक लक्षण) एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थान्तरित होते है ,इसलिए ही इंसान के गर्भ से इंसान और जानवर के गर्भ से जानवर पैदा होते है। अगर यह नही होते तो शायद ऐसा नही होता। साथ ही मा-बाप के व्यवहार उनकी बीमारी उनकी मानसिक और शारीरिक बनाबट भी इन्ही की द्वारा उनकी संतान में स्थान्तरित होती है। यही कारण है कि किसी बच्चे का चेहरा उसके माँ-बाप से मिलता है साथ ही माँ-बाप का व्यवहार भी। तभी कहते है कि दुष्ट के घर दुष्ट और साधु के घर साधु पैदा होते है किंतु हमेशा ऐसा नही होता, क्योंकि पैदा होने के बाद परवरिश जीवन की दिशा और व्यवहार को बदल देती है। इसी को एक प्रकार से mRNA और DNA का परिवर्तन कह सकते है ,जिस पर माहौल का प्रभाव पड़ता है।
वास्तव में वायरस आपको बीमार नही करता बल्कि वह स्वय को जिंदा रखने की कोशिश करता है जिसके कारण जीव बीमार होता है। जैसे शेर हिरन का शिकार शौक से नही करता बल्कि इसलिए करता है जिससे वह अपना पेट भर सके और जीवित रह सके ।
कोरोना वायरस:-
कोरोना वायरस एक mRNA वायरस है। कोरोना वायरस की पहचान 2019 में चीन के वुहान शहर में फैली बीमारी से हुआ। वास्तव में कोरोना वायरस कोई नया वायरस ना होकर पहले से ज्ञात एक प्रकार का इंफ्यूएंजा वायरस है, इसी कारण इसके लक्षण शर्दी-जुकाम-बुखार-निमोनिया बाले होते है। इसकी सबसे पहले पहचान स्कॉटलैंड की महिला वैज्ञानिक जून अलमेडा ने 1964 में की थी, और इसका नाम कोरोना वायरस दिया था ,किन्तु तब इसका प्रभाव इतना नही था ।
कोरोना वायरस एक रेस्पिरेटरी वायरस है(साँस) जिससे यह केवल फेंफड़ों(लंग्स) को ही प्रभावित करता है और फेफड़ों के सिटी स्कैन के द्वारा इसकी भयाभहता का पता लगाया जाता है।
कोरोना वायरस का आकार गेंद की तरह गोल है और इसके ऊपर प्रोटीन के रिसेप्टर लगे है, जिनके द्वारा यह फेंफड़ों की कोशिका में प्रवेश कर उसके केन्द्रक तक पहुंचता है और प्रजनन प्रारम्भ करता है।
सभी प्रकार के वायरसों की खाशियत होती है कि वो स्वयं को जीवित रखने के लिए समय समय पर अपनी आनुवंशिक व्यवस्था प्रणाली को बदलते रहते है, जिसे म्यूटेशन कहते है। इस प्रणाली में वायरस अपने जेनेटिक मेटेरियल में उपस्थित प्रोटीन व्यवस्था को बदल लेते है।
इसीप्रकार कोरोना वायरस ने भी अपनी इसी जेनेटिक प्रोटीन व्यवस्था को बदल लिया है, इसलिए इसके कई प्रकार पाए जा रहे हैं।
कोरोना वायरस ने अपनी जेनेटिक प्रोटीन व्यवस्था को दो स्थानों पर बदला है इसलिए इसे डबल म्यूटेंट कहते है और इसने कहीं पर तीन स्थानों पर बदला है इसलिए इसे ट्रिपल म्यूटेंट कहते है ।