Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
5 May 2020 · 4 min read

वाचाल पौधा

पगडंडी पर चलते एक पौधा देखा ।
देख चलता चला ।
पौधे ने कहा हे ! मूढ़ कहा चला कर अनदेखा ।
मैने उस पौधे को देखा जो था बोलता ।
बोला झटपट वो क्या सुनो !
हे ! मानव समझ रखा है क्या अपने आप को ।
जी सकोगे बिन हवा, बिन पानी ।
बिन भू, बिन गगन, बिन अग्नि ।
क्या समझते हो विज्ञान है चमत्कारिक ।
बिन प्राकृतिक कुछ न होवे सर्व भ्रमकारिक ।
कामधेनु बिन पायस कहां ।
सो प्राकृतिक बिन कृत्रिमता कहां ।
मनु सुन कर बौखलाया ।
और बोला अपना सिर हिलाया ।
हवा तो हो देते तुम कैसे कहूं पानी ।
बोला पौधा धीरज धरकर ।
मैं न रहूं तो न बरसे पानी ।
बोला मनु पूर्ण समझाओ ।
तब तो समझे कहानी ।
रोपित करो जितना हमको उतना ही जल बरसे ।
देख पपीहा ,चातक और मोर तरसे ।
आक्सीजन बिन न होवे संवहन ।
हवा सहारे संवहन करवाऊं ।
तब जाकर मेघ सजाऊं ।
सो मैं पुरा गगन बनाऊं ।
बादल आए बादल जाए ।
जब तक मै न बरपाऊं ।
यदि बहो मै तीव्र तो जल बूंद प्रहर न पावे।
जब हो जाऊं शांत तो घन भारी जल बरसावे ।
यह सब मनु सोच रहा भरमाएं ।
और कहा उसने हे ! भाई तुमने क्या-क्या बनाए ।
सो तुमने यह भी कहा भू भी आप बनाए ।
बोला तरु से मनु भू भी हमने सजाए ।
तभी तो हम ग्रीन गोल्ड कहलाए ।
घन निर्माण कर वर्षा करवाऊं ।
तब सरिता मे पानी लहराऊं ।
पानी लहरे-फहरे किनारो को क्षत-विक्षत कर ।
मिट्टी काट-काटकर सरिता ।
बांगर, खादर जलोढ मृदा उपजाए ।
जाकर तब उत्तर मैदान बनाए ।
जिसमे ढेरो अन्न उगाए ।
सब जीव जिससे भूखे न रह पाए ।
आज जहां शैलेंद्र खड़ा है ।
टेथीज सागर वहां लहराए ।
तरणी कण-कण , क्षण -क्षण ।
मिट्टी को काट गिराए ।
तब जाकर महान हिमालय बन पाए ।
जो भीषण सर्द, शत्रु से हमे बचाए ।
मनु सुन बोला चुन ।
कैसे तुम पावक बनाए ।
बोला तरू मनु से झटपट ।
कोटि वर्ष पूर्व दब हमी भू मे ।
कोयला, खनिज तेल बनाए ।
कभी -कभी वनो मे घर्षण से लग जाय दावाग्नि ।
कहो ये मनु ये अग्नि कहां से आए ।
इसको तो हमने ही जलाए ।
इस जग मे जो भी है सर्व हमने बनाए ।
न हो हम यदि लोग छटपटा मर जाएं ।
करते हो जल का दुरुपयोग होने पर अति ।
विनाश काले विपरीत मति ।
सूखा है जहां वहां पर देखो परेशान जन नीर दुर्गति ।
कीमत समझ मे आवे किसी चीज के खोने पर ।
उसकी आवश्यकता होने पर ।
नही रहेगा नीर तो फिर क्या होवे ।
जब चिड़िया चुग गई खेत तो मतलब क्या पछतावे ।
बिन जल -जल मरोगे यदि हुए न सचेत ।
जीवन है हमी पर निर्भर ।
फिर भी हमको करते हो जर्जर ।
कुल्हाड़ी, ब्लेड से मार ।
हमको करते घायल ।
हममे भी जान है ।
हम भी रोते है हम भी हैं बेहाल ।
हे! मनु क्यों काट देते हो हमको ।
क्यों उजाङ देते हो पशु -पक्षियो के घर को ।
क्या बिगाङे हैं हम न हैं खबर ।
कुक्कू पखेरू बैठ हमपे गीत गाएं ।
मुझे हंसाएं मुझे नचाएं ।
हो न मक्षिका, भौरे तो खिले न फूल ।
पाओगे न फल मनु रहेगा उर मे शूल ।
हमे उजङने से बचाओ ।
चिपको आंदोलन को तुम और बढाओ ।
सुंदरलाल बहुगुणा सब बन जाओ ।
सबसे बुद्धिप्रद मनु आप ।
अच्छे-बुरे सभी की है तुमको भाप ।
मुझमे भी हैं प्राण और विरह -ताप ।
मुझे लगाओ जिससे जग बने खुशहाल ।
परंतु दिन -प्रतिदिन मनु आप ने किया उदास ।
अपने पैर पर स्वयं कुल्हाड़ी मारो न आप ।
सर्व है हम देने वाले ।
क्या-क्या न देते ?
हवा देते, दवा देते, मेवा देते और देते दुकूल ।
फल देते लकड़ी देते, छाया देते और देते फूल ।
जल बरसाते, भू सजाते, प्यार लुटाते ।
घन बना हरीतिमा फैलाते ।
दुकूल बने कपास रेशम एवं जूट ।
प्राप्त होते ये सब हमसे ही फूट ।
जो भी है परमाण्विक ।
थोरियम, अभ्रक हम ही बनाए ।
ये जल एवं भू मे समाए ।
हम भी है प्रकाश पुंज दिनकर के सहारे ।
उनसे ही मै और ये जग सारे ।
बोला न मनु कुछ ।
गिर गया पौधे के चरणतल ।
प्रेमाश्रु जल बहलाया निर्मल ।
बोला हम कितने है निर्दयी ।
जो समझ न पाए अपने मीत -हित को ।
दिन -प्रतिदिन क्षति पहुंचाते ।
होगा न अब ऐसा तरु भाई ।
आज मेरी बुद्धि है खुल आयी ।
अब मै न कटने दूंगा भले ही कट जाऊं ।
अब पूर्ण जीवन आपको बचाऊं ।
तामसिक प्रवृति के नर को समझाऊं ।
अति आतप जो व्याकुल होई ।
तरु छाया सुख जानइ सोई ।
तुम हो शांति के प्रतीक ।
इस धरा के जीवन के सीक ।
मनु बोला क्षमा करो हे ! तरु ।
अश्रु बहलाए ।
सबसे करता निवेदन ।
अगर काटना पड़े मुश्किल हालात मे पेङ भी तो ।
एक काटे कोटि लगाएं ।
पौधे सुन लहराएं ।
मनु को दिए आशीष ।
हे ! पुत्र पूर्ण करो ये अभियान ।
कृपा करे जगदीश ।
मर कर भी हो जाओ अमर ।
याद करे विश्व भर ।
बोला मनु अंततः ।
अपने तरु को अब हरगिज मिटा न सकाउं।
अब मै न कटने दूंगा भले ही कट जाऊं ।
पीपल, नीम, तुलसी, वट, आम्र जम्बू आदि वृक्ष उपजाऊ ।
जग को खुशहाल बनाउ और सजाउ ।
मनु आगे पगडंडी पर कदम आगे बढाएं ।
सब तरु प्रेम से स्व सिर झुकाए ।
अमर रहे मनु ईश विजय दिलाए ।

प्रकृति ईश्वर की सर्वोत्तम कृति है ।

?? Rj Anand Prajapati ??

Language: Hindi
4 Likes · 2 Comments · 570 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
रंग में डूबने से भी नहीं चढ़ा रंग,
रंग में डूबने से भी नहीं चढ़ा रंग,
Buddha Prakash
नाम दोहराएंगे
नाम दोहराएंगे
Dr.Priya Soni Khare
पेड़ - बाल कविता
पेड़ - बाल कविता
Kanchan Khanna
*वो मेरी जान, मुझे बहुत याद आती है(जेल से)*
*वो मेरी जान, मुझे बहुत याद आती है(जेल से)*
Dushyant Kumar
भाई घर की शान है, बहनों का अभिमान।
भाई घर की शान है, बहनों का अभिमान।
डॉ.सीमा अग्रवाल
"खामोशी की गहराईयों में"
Pushpraj Anant
ईश्वर की कृपा दृष्टि व बड़े बुजुर्ग के आशीर्वाद स्वजनों की द
ईश्वर की कृपा दृष्टि व बड़े बुजुर्ग के आशीर्वाद स्वजनों की द
Shashi kala vyas
*माना के आज मुश्किल है पर वक्त ही तो है,,
*माना के आज मुश्किल है पर वक्त ही तो है,,
Vicky Purohit
डॉक्टर
डॉक्टर
Dr. Pradeep Kumar Sharma
23/172.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/172.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
"सियार"
Dr. Kishan tandon kranti
सुख हो या दुख बस राम को ही याद रखो,
सुख हो या दुख बस राम को ही याद रखो,
सत्य कुमार प्रेमी
#हिंदी_ग़ज़ल
#हिंदी_ग़ज़ल
*Author प्रणय प्रभात*
✍️ शेखर सिंह
✍️ शेखर सिंह
शेखर सिंह
एक अणु में इतनी ऊर्जा
एक अणु में इतनी ऊर्जा
AJAY AMITABH SUMAN
सुनो सुनाऊॅ॑ अनसुनी कहानी
सुनो सुनाऊॅ॑ अनसुनी कहानी
VINOD CHAUHAN
*ग़ज़ल*
*ग़ज़ल*
शेख रहमत अली "बस्तवी"
*पीने वाले दिख रहे, पी मदिरा मदहोश (कुंडलिया)*
*पीने वाले दिख रहे, पी मदिरा मदहोश (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
आपस में अब द्वंद है, मिलते नहीं स्वभाव।
आपस में अब द्वंद है, मिलते नहीं स्वभाव।
Manoj Mahato
मेरी कलम
मेरी कलम
अभिषेक पाण्डेय 'अभि ’
कितना आसान होता है किसी रिश्ते को बनाना
कितना आसान होता है किसी रिश्ते को बनाना
पूर्वार्थ
क्या कहुं ऐ दोस्त, तुम प्रोब्लम में हो, या तुम्हारी जिंदगी
क्या कहुं ऐ दोस्त, तुम प्रोब्लम में हो, या तुम्हारी जिंदगी
लक्की सिंह चौहान
औरतें ऐसी ही होती हैं
औरतें ऐसी ही होती हैं
Mamta Singh Devaa
You have climbed too hard to go back to the heights. Never g
You have climbed too hard to go back to the heights. Never g
Manisha Manjari
Friendship Day
Friendship Day
Tushar Jagawat
कोई पूछे तो
कोई पूछे तो
Surinder blackpen
तुम अपने धुन पर नाचो
तुम अपने धुन पर नाचो
DrLakshman Jha Parimal
जैसे एकसे दिखने वाले नमक और चीनी का स्वाद अलग अलग होता है...
जैसे एकसे दिखने वाले नमक और चीनी का स्वाद अलग अलग होता है...
Radhakishan R. Mundhra
कई रात को भोर किया है
कई रात को भोर किया है
कवि दीपक बवेजा
मौन सभी
मौन सभी
sushil sarna
Loading...