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31 Mar 2019 · 3 min read

वह टेलिफ़ोन की घंटी

सत्य घटना
(स्वयं मेरे साथ घटित सत्य वृत्तांत)

कहते हैं कि परलोक सिधार कर भी अपने प्रियजनों की आत्मा हमें कभी छोड़ कर नहीं जाती। वह किसी न किसी रूप में हम से जुड़ी रहती हैं।
मेरे जीवन का सर्वाधिक दुःखद क्षण था जब दिनांक छैः दिसम्बर 2007 के दुर्भाग्यपूर्ण दिन मेरी प्यारी माँ हमें छोड़ कर स्वर्ग सिधार गई थीं। पापा इस असहनीय दुख को बर्दाश्त नहीं कर सके और माँ के स्वर्गवास के साढ़े चार माह पश्चात् 27 अप्रैल 2008 को वे भी हमें छोड़ गए। मेरे लिए पांच माह के अंतराल में अपने प्रिय माता-पिता को खो देना दुःख का पहाड़ टूटने के समान था।
दो माह पश्चात् 16 जुलाई को मेरा जन्मदिन था मैं सुबह से बहुत उदास थी। मेरे पति व बच्चे भरसक कोशिश कर रहे थे कि मैं आज के दिन खुश रहूं परन्तु मुझे सवेरे से पापा-मम्मी की याद करके बारम्बार रोना आ रहा था।
इसका कारण यह था कि प्रत्येक वर्ष बधाई व आशीष का सबसे पहला फोन उन्हीं का आता था। यही बात बार-बार याद आ रही थी।
करीब साढ़े ग्यारह बजे का समय रहा होगा। मेरे लैण्ड लाइन टेलीफ़ोन पर एक रिंग बज उठी। यह टेलिफ़ोन की रिंग नहीं बल्कि वह किसी मंदिर में पूजा के समय बजने वाली घंटी की लयबद्ध मधुर ध्वनि थी जो कि प्रतिदिन बजने वाली सामान्य रिंग टोन से अलग आवाज थी।
हम सभी स्तब्ध थे कि यह क्या है ? एकाएक मेरे पति बोल उठे–“स्वर्ग से पापा का फोन है” मैंने तुरंत दौड़ कर फोन उठाया। दूसरी तरफ शांत नीरव सन्नाटा था।
मैं हैलो-हैलो करती रो पड़ी।
मेरे पति मुझे धैर्य बंधा रहे थे।
थोड़ी देर बाद वे बोले – – – “मम्मी का फोन नहीं आया।”
सुनकर आश्चर्य होगा कि उनका वाक्य पूरा होने से पहले ही हूबहू वैसी ही मंदिर की मधुर घंटी सी सुरीली रिंग फिर से फोन पर बजे उठी। अबकी बार मेरे पति ने फोन उठाया। उन्हें भी दूसरी ओर सन्नाटा ही मिला।हम सभी हतप्रभ।

यकीन कीजिए उस दिन उन दोनों काॅल्स के अतिरिक्त उन के पहले या बाद में किसी भी इनकमिंग काॅल पर वह मंदिर की घंटी वाली रिंग टोन नहीं थी।उस दिन जन्मदिन की बधाई के अनेकों फोन आए पर सभी की वह विभाग द्वारा निर्धारित सामान्य रिंग टोन थी। मैंने रिश्तेदारों व परिचितों से पता किया । सभी ने उस अवधि में मुझे काॅल करने की बात से इंकार कर दिया।
चूँकि मैं स्वयं बी एस एन एल कार्यालय में पदस्थापित थी अतः अपनी जिज्ञासा शांत करने हेतु मैंने दूसरे दिन इनकमिंग कॉल्स की सूची निकलवाई। आपको यह जानकर हैरानी होगी लिस्ट में उन दोनों काॅल्स वाली अवधि में मेरे फोन पर कोई इनकमिंग कॉल आना ही नहीं दर्शाया जा रहा था।
मैं विभागीय होने की वजह से जानती थी कि विभाग में किसी भी फोन के लिए मंदिर की घंटी वाली वह रिंग टोन नहीं प्रदान की जाती है।
उस दिन से आज तक न मैंने,न मेरे परिवार,न परिचितों, न विभाग वालों ने वह रिंग टोन किसी बेसिक फोन पर सुनी।
यह सिद्ध हो गया था कि मेरे पूज्य माता-पिता की पुनीत आत्माएँ अपनी लाड़ली को आशीष देने आई थीं । यह अविश्वसनीय किन्तु एक प्यारा-सा सत्य मैंने अपनी प्रिय स्मृति रूपी धरोहर बना कर सहेज रखा है।

रंजना माथुर
जयपुर (राजस्थान)
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना

Language: Hindi
192 Views
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