वही सुबह फिर आएगी
लॉक डाउन 3 मई तक बढ़ गया है पिछले 21 दिनों से हम सभी विषम परिस्थितियों का बहुत ही दृढ़ता से सामना करते आए हैं ; जो काबिले तारीफ है । हम सभी ने इस विकट स्थिति का डटकर मुकाबला भी किया है और बहुत कुछ सीखा भी है मगर अभी हम उस स्थिति में नहीं पहुंचे हैं जिसमें हम अभी उसी पहले जैसी दिनचर्या को धारण कर सकें । इसलिए प्रशासन की ओर से हमें और समय दिया गया है उस जीवनचर्या या दिनचर्या को प्राप्त करने के लिए जिसके लिए हम सभी को संघर्ष करना है, इम्तिहान देना है और पास भी होना है ।
हरिवंश राय बच्चन जी की ये पंक्तियां आप सभी को आत्मबल प्रदान करेंगी ।
तू न थकेगा कभी,
तू न रुकेगा कभी,
तू न थमेगा कभी,
कर शपथ कर शपथ कर शपथ
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ
ये परीक्षा की घड़ी है । धैर्य धारण करना है । समय दिया गया है अपने और अपनों के नजदीक रहने का । लॉक डाउन के दूसरे चरण के सभी नियमों का सकारात्मक रूप से पालन करें । क्योंकि यही आपको कोरोना महामारी पर विजय पाने के आपके लक्ष्य में आपको विजयी बनाएगा । कोरोना पर काबू पाने में देश भी अपनी भूमिका निष्ठा से निभा रहा है और आपको भी अपने देश के साथ बने रहना है ।
कुछ मन के भाव कविता के रूप में आपके समक्ष प्रस्तुत हैं ।
वही सुबह फिर आएगी
वही स्वर्णिम प्रभात लिए
पंछी कलरव गान करेंगे
खुशियों की बारात लिए
वही सुबह फिर आएगी
पद चापों की छाप लिए
वही सुबह फिर आएगी
एक दूजे का साथ लिए
अपनाने होंगे सभी नियम
नहीं निकलना बाहर अब
निकला तो पछताएगा
फिर लॉक डाउन बढ़ जाएगा
अपनी या न किसी कौम की
चिंता अब तू सबकी कर
काशी काबा एक है सब
सब में ही ईश्वर का जप
वही सुबह फिर आएगी
वही सुनहरी प्रभात लिए
कामकाज पर जाएंगे जन
मोटर वाहन चलेंगे सब
माना इंडिया है यह डिजिटल
बंद से नहीं रुकेगा कर्म
देखो काम हो रहा घर में
हाजिरी भी लग रही है सब
सब विद्यालय बंद है फिर भी
शिक्षक कर रहे अपना धर्म
कर्म ही पूजा सच्ची इनकी
ज्ञान बांट रहे घर में सब
बच्चे भी सहयोग दे रहे
सपना हो रहा है यह सच
डिजिटल इंडिया मेरा भारत
हर घर में दिखता है अब
वही सुबह फिर आएगी
वही स्वर्णिम प्रभात लिए
पंछी कलरव गान करेंगे
खुशियों की बारात लिए
नन्हे – नन्हे बच्चे देखो
कैसे पढ़ते घर में सब
कौशल सभी हो रहे विकसित
अभिभावक है हर्षित सब
मगर भा नहीं रही है फिर भी
बंदिश की जड़ता यह अब
जैसे निदाघ में जन करते
धाराधार की कल्पना सब
वैसे ही मन विकल है अब तो
उड़ने को नभ में पर – पर
मानसरोवर उमड़ रहा है
बहने को निश्चल ये मन
नदियां सभी स्वच्छ हो रहीं
निर्मल बना गंगा का जल
ओजोन परत में दिखा बदलाव
पृथ्वी की कंपन कम आज
पर्यावरण प्रदूषण रहित
बयार बह रही विष – मुक्त आज
बिन बरसात मयूर है नाचा
जंगल में तप है अब कम
प्रेमभाव जग गया है सब में
घर में ही बैठे – बैठे
लैपटॉप मोबाइल को सबने
दूर किया अपने से अब
अपनों के नजदीक आ रहे
साथ कर रहे भोजन सब
मन की दूरी हो रही कम
मन से मन का हो रहा संग
बच्चों के संग, बच्चे संग में
खेल… खेल रहे घर में सब
मात – पिता संग दादा – दादी
दुख – सुख सबके एक हैं अब
खोने नहीं है यह पल हमको
यही उम्मीद जगानी है
बन्द के अब खुलने के बाद
यही बातें अपनानी हैं
कोरोना से खोया जो हमने
उसको याद नहीं करना है
इस आपदा का एक भी बार
नाम नहीं हमको लेना है
पाया जो… सीखा जो हमने
उसको साथ ले चलना है
प्रकृति का दोहन अब हमको
बिल्कुल भी नहीं करना है
जीव – जंतु से प्रेम है करना
पेड़ों को अधिक लगाना है
खिलवाड़ प्रकृति से नहीं करना
न ही प्रदूषण फैलाना है
सीख ये लो अब तुम सब
प्रकृति का सम्मान करो
वही सुबह फिर आएगी
अपने पर विश्वास रखो