वसुधैव कुटुम्बकम
आदमी खड़े होकर चले,
रेंगते हुए आगे बढ़े.
रंगीन कपड़े कब से खरे.
प्राकृतिक चक्र अचूक बडे,
राष्ट्रवाद बडा के
वसुधैव कुटुम्बकम बडा,
कैसे हो जीव से जीवन के भले.
संस्कारों के संग पैदा हुये,
नर से नारायण
नारी से लक्ष्मी बने,
आकाश अंतरीक्ष में कौन बसे,
.
कौन धज़ा
है सजा
कैसे मजा,
ऐसे ना सता,
सत्ता है उसकी,
देगा वही सजा,
.
पारस अभी तक नहीं मिला,
हंस हंसा से ले पूछ पता,
तुझसे मैं
मुझसे तू
तू ही तू
जो किया,
मेरा तेरा जो मिटा,
खोज़ ले ब्रह्म सा पता,
.
वैद्य महेन्द्र सिंह हंस.