वर्तमान की राजनितिक पहेली
जा रहे हो जिस राह पर
नफ़रत के कुएं उसमे खुदे है
ढक दिए हैं फूलों की चादरों से
और रख दी गयी है मूर्तियां आराध्य की
खड़े किए हैं फलदार दरख़्त धतूरे के
भर दिए हैं गिलास पानी भांग के
और क्षितिज पर मरीचिका है स्वर्ग की
चाशनी में लिपटे हुए आदेश है
स्वर्ग की चाह में सब निस्तेज है ।
यही पहेली है वर्तमान की
भूत में जाने के जिसमें रास्ते बने है
अंधकार है घना किन्तु
परवानों के जलने की रश्मियां अभी अनेक है
चलना तुम्ही को है
समझ कर आगे बढ़ना तुम्ही को है..!
अगर चाहते हो फैल जाए
आकाश में चमक शमशान की
और खड़ी हो जाएं मूर्तियां
जमीनदोज तिलिस्मी पाषाण की
लिए हाथों में तलवार और
शब्दों में स्वेक्षाचारी कानून की….
या चाहते हो,
हो विकास वर्तमान का
भिवष्य के लिए शांतिपूर्ण उज्ज्वल मार्ग का
इतिहास में पीछे छूटे इंसान का
और नफरत में घुने समाज का..
यही पहेली का अनुबंध है
जाने के मार्ग है बहुत किंतु
वापसी का ना कोई प्रबंध है ….!!