वर्ण पिरामिड
वर्ण पिरामिड
मजबूरी
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येवर्ण पिरामिड
दर्पण
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मैं
जब
दर्पण
देखता हूँ
हर बार ही
चौंकना पड़ता
ठगा सा रह जाता।
वो
मुझे
डराती
समझाती
रहती सदा
मैं ही बेवकूफ
समझ नहीं पाता।
✍ सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा(उ.प्र.)
8115285921
©मौलिक, स्वरचित
कैसी
बेबसी
मजबूरी
जो हम ढोते
जीवित रहते
घिसटते रहते।
वो
आज
बेबस
लाचार है,
आखिर कार
इतना विवश ?
ये कैसी मजबूरी?
● सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा(उ.प्र.)
8115285921
©मौलिक, स्वरचित