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16 Mar 2021 · 1 min read

वफ़ा की दास्तां से ऊबे हम

1222 + 1222 + 12
तिरी यादों में तड़पे डूबे हम
वफ़ा की दास्तां से ऊबे हम

न कह पाए कहानी यूँ कभी
बनाते रह गए मंसूबे हम

मिली मंज़िल न तेरी बज़्म ही
सफ़र में थे अजीब अजूबे हम

तमन्नाओं की बस्ती ना बसी
नगर वीरान तन्हा सूबे हम

क़सम ली थी क़दम ना रखने की
उन्हीं गलियों में लौटे डूबे हम

2 Likes · 3 Comments · 319 Views
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