Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
9 Feb 2017 · 9 min read

वतन की ओर वापसी

वतन की ओर वापसी

एक अधेड़ उम्र, सफेद बाल, कमर से झुकी, बार-बार खांसती, अपने चौदह-पन्द्रह साल के पुत्र के साथ अमृतसर रेलवे स्टेशन पर उतरी । उतरते ही उसने सबसे पहले स्टेशन की जमीं को चूमा । अभी उठी भी नही थी कि उसके बेटे ने कहा- ‘‘ ये क्या कर रही हो अम्मी जान‘‘ ‘‘बेटे आज से चौदह-पन्द्रह साल पहले इसी रेलवे स्टेशन से हम अपने भारत देश से रूखस्त हुए थे, परन्तु उस समय यहां पर इतना कोलाहल और हो-हल्ला था । यहां पर खून की होलियां खेली जा रही थी । जिसको देखो, हाथ में हथियार लिए एक-दूसरे को मारने पर उतारू थे । आज यहां पर अमन और शांति देखकर बरबस इस धरती को चूमने का मन किया ।
‘‘ अम्मी जान, क्या आप बता सकती हैं कि हम कहां जा रहे हैं ? ’’
‘‘ आज हम वहां जा रहे हैं जिनके लिए आज तक मैं जिंदा हूं ।’’ यह कहते-कहते वह औरत गिर पड़ी ।
वह बच्चा उसे उठाते हुए, ‘‘ संभलो अम्मी जान, उठो और चलो, हमें जहां जाना है । अच्छा तो बताओ अब हमें और कितनी दूर चलना है । ’’
‘‘अभी तो घंटे भर का और सफ र है, और हां जब तक मैं उनसे तुम्हें मिला ना दूं तब तक चैन की सांस नही लूंगी, चलो समीर ।’’ कहते हुए उठ खड़ी हुई अभी उन्होंने वहां से एक बस पकड़ी । वह वहां से चलकर करीब एक घंटे बाद एक गांव में रूकी । वह अधेड़ उम्र औरत और उसका वह बेटा समीर दोनों बस से नीचे उतरे ।
‘‘ चलो समीर, अब हम गांव के अन्दर चलते हैं । वही वह महानुभाव है जिनसे मिलाने के लिए मैं तुम्हें पाकिस्तान से यहां लाई हूं ।’’
‘‘अच्छा अम्मी जान, पर बताओ तो वह है कौन ? ’’
‘‘वही पर चलने पर बताऊंगी । तुम चलों तो सही ।’ गांव के बीच से होते हुए दोनों दूसरे छोर पर निकल गये । गांव से बाहर निकलने पर खेतों में कच्चा मकान बना हुआ था । उसे देखकर वह औरत कहने लगी -‘‘ देखो समीर वही घर है जहां मैं तुम्हें लेकर आई हूं । वही हमारी मंजिल हैं । उसी घर में समझों वह महापुरूष है । जिनसे मिलाने के लिए मैं तुम्हें यहां लाई हूं । आज मेरे कदम जमीं पर नही टिक रहे हैं । लगता है आज मैं आसमां में उड़ रही हूं
‘‘पर मां तुम जिन्हें महापुरूष कह रही हो, वो है कौन ? ’’
‘‘चलो सब पता चल जायेगा ।’ दोनों कुछ ही समय में उस घर के सामने पहुंच गये । घर के बाहर नीची दीवार थी जो घर के चारों ओर थी । उस दीवार में एक छोटा सा दरवाजा बना हुआ था । दरवाजे के नाम पर छोटा-सा फ रचटों से बना हुआ लकड़ी का दरवाजा बना हुआ था । उसे बाहर से धकेलते हुए वह अन्दर घुसी, साथ-साथ समीर भी घुस गया ।
‘‘बलविन्द्र, बलविन्द्र हो क्या ? ’’
अन्दर से आवाज आई-‘‘कौन है ? अन्दर आ जाओ । मैं अन्दर ही हूं ।’’ झोंपड़ी के अन्दर हल्का-सा अन्धेरा था । उसके कोने में एक चारपाई थी । चारपाई पर एक अधेड़ उम्र का युवक लेटा हुआ था । दाढ़ी में सफेद बालों की झलक साफ दिखाई दे रही थी । सिर के बाल सफेद और गाल अन्दर धंसे हुए, आंखें बाहर की तरफ उभरी हुई, आधी बाजू की कमीज से हाथों पर पतली खाल से मोटी-मोटी नसें साफ नजर आ रही थी । चारपाई से उठने का अथक प्रयास करते हुए उठने की कोशिष करता है । तब तक समीर और उसकी मां अन्दर बलविन्द्र के सामने थे ।
‘‘आप कौन हैं ? आपकी आवाज कुछ जानी-पहचानी सी लग रही है ।’’ बलविन्द्र की लडख़ड़ाती आवाज एकदम से रूक गई । गला भर आया ।
‘‘आपने मुझे नही पहचाना ? ’’
‘‘अरे आप……..गुलनार ? ’’ यह कहते ही बलविन्द्र गिर पड़ा ।
गुलनार झुक कर उठाती है । बेटा समीर जरा मटके से पानी लाओ । समीर पानी लाकर देता है । गुलनार ने बलविन्द्र के मुंह पर पानी के छींटे मारे । बलविन्द्र ने धीरे-धीरे आंखें खोली।
‘‘गुलनार-गुलनार, आप यहां कैसे ? ’’
‘‘मैं आपसे ही मिलने के लिए आई हूं ।’’
यह सुन बलविन्द्र उसे गले लगाता है । दोनों की आंखों से पानी बह निकला । दोनों दिल खोलकर खुब रोये । कुछ देर तक दोनों एक-दूसरे से लिपटे रहे । अश्रुओं से एक-दूसरे को भिगोते रहे । कुछ देर बाद –
‘‘गुलनार ये तो बताओ कि तुम्हारे साथ ये कौन है ? ’’
‘‘ये समीर है, हम दोनों का बेटा, समीर ये तुम्हारे पिताजी हैं । मैंने बताया था ना, मिलो इनसे यही वो महापुरूष हैं । जिनसे मिलाने के लिए ही मैं तुम्हें यहां लाई हूं ।’’ समीर अपने पिताजी के चरणों में गिर पड़ा । बलविन्द्र ने उसे उठाकर गले से लगाया, और उसे बुरी तरह से चुमने लगा । ऐसा लग रहा था मानो पूरा प्यार आज ही उस पर लुटा देगा । आंखों से बहने वाला पानी अब भी थमने का नाम नही ले रहा था । तीनों की आंखें नम थी, कपड़े आंसूओं से गीले । घंटे-दो-घंटे बाद जब सब शांत हुआ तो बलविन्द्र बोला –
‘‘जब हिन्दू और मुसलमानों का झगड़ा हुआ था तो मैं तुम्हें यहां-से-वहां पागलों की तरह ढूंढता फि रा, पता चला कि तुम अमृतसर रेलवे स्टेशन से पाकिस्तान जा रही हो । मैं वहां पर पहुंचा । वहां पर मैंने तुम्हारे अब्बा और अम्मी को देखा । दोनों बुरी तहर से जख्मी थे । उन्हें उठाकर अस्पताल ले गया, मगर रास्ते में ही उन्होनें दम तोड़ दिया । उन्होंने तुम्हारे बारे में बताया कि तुम पाकिस्तान जाने वाली रेल में बैठ चुकी हो । रेल पाकिस्तान के लिए रवाना हो चुकी थी । मैं दूसरी रेल में बैठ भी लिया था मगर कुछ स्वार्थी लोगों ने रेल में आग लगा दी । रेल के अन्दर एक-दूसरे को बुरी तरह से काट रहे थे । मैं भी बुरी तरह से घायल होकर एक अस्पताल पहुंचा । वहां पर कुछ दिनों तक मेरा ईलाज चला । कुछ दिन बाद मैं स्वस्थ होने पर वापिस इसी जगह आकर रहने लगा । हर दिन याद कर-कर के रोता रहा । ना भूख लगती और ना ही निंद आती । बस हमेशा तुम्हारे नाम की ही रटन लगी रहती ।’’
‘‘आप तो हमेषा मुझे रटते रहे, मगर मेरे साथ क्या बीती ? वो भी अब सूनो । यहां पर हिन्दू और मुसलमानों का दंगा छिड़ गया था । मैं अपने माता के साथ अमृतसर रेलवे स्टेशन पर पहुंची । मेरे अब्बू ने बताया कि पाकिस्तान में काबूल के पास एक गांव में उसकी रहती है । हम उसी के यहां जायेगें। वहां पर जगह का इंतजाम होने के बाद वहीं पर कोई कारोबार भी कर लेंगे, और भारत में फिर कभी नही आयेंगे । हमारी रेल अमृतसर स्टेशन पर खड़ी थी । हम उसके एक डिब्बे में चढ़ गये । रेल चलने ही वाली थी कि- तभी वहां पर खून से लथपथ एक टोली आई । उसने एक युवक का सरेआम कत्ल कर दिया । अब्बू से यह देखा ना गया । वो नीचे उतरा, और उन टोली वालों को समझाने लगे, मगर उनमें से एक मुसलमान ने मेरे अब्बू को गद्दार बताते हुए उस पर अपने खंजर से वार कर दिया । यह देख मेरी अम्मी भी नीचे उतर गई । मैं उतरने ही वाली थी कि रेल चल पड़ी । मैं रेल के दरवाजे से उन्हें देखती रह गई । रेल आगे बढ़ती जा रही थी और मेरे अब्बू और अम्मी दोनों दूर होते जा रहे थे । कुछ ही देर में रेल हवा से बातें करने लगी । मैं वापिस अपने स्थान पर बैठ गई । मेरे जहन में आया कि मैं चलती हुई रेल से कूदकर अपनी जान दे दूं, मगर दूसरे ही पल सोचा कि जो मेरे पास तुम्हारी निषानी है वो जब तक तुम्हें सौंप ना दूं । मैं अपनी पूरी जी-जान से उसकी हिफाजत करूं । कुछ ही घंटों में उस रेल ने मुझे पाकिस्तान की सरहद में पहुंचा दिया । वहां पर भी वहां पर भी ऐसा ही खून-खराबा था । वहां से बचते-बचाते मैं काबूल पहुंच गई । वहां से अपनी फुफी जान के घर पहुंची । उसे अपनी सारी कहानी बताई । फुफी जान ने मेरे रहने का इंतजाम कर दिया । कुछ दिन तक तो वह अच्छे से पेष आई, मगर उसके बाद उसने अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिये । मेरे पेट में तुम्हारा बच्चा धीरे-धीरे बढऩे लगा । फु फ ी मुझे अमीरजादों के घर काम करने को भेजती । मैं वहां झाडू-पौंछा करती, बर्तन मांजती । दिनभर मुझे बहुत ज्यादा काम करना पड़ता । शाम को घर आते ही फुफी की गाली-गलौच सुननी पड़ती । एक दिन तो शाम को फुफी ने मुझे मेरा बच्चा गिराने वाली बात कही । मैने उसकी बात नही मानी तो उसने मारने की धमकी दी । मगर मैं वहां से किसी तरह से बच निकली । वहां से निकलने के बाद कई दिनों तक मैं ईधर-से-ऊधर भटकती रही, फिर एक हिन्दू परिवार मुझे वहां मिला । वह बहुत ही अमीर परिवार था । उन्होनें मुझे अपने घर में पनाह दी । वहां वह परिवार मुझे अपनी बेटी की तरह ही रखता था । वहीं पर मैंने अपने बेटे समीर को जन्म दिया । जब समीर 5-6 साल का हुआ तो मैं उनसे विदा लेकर वापिस भारत आने को रवाना हुई, मगर अब भी किस्मत मुझे धोखा दे गई । मैं जिस रेल में चढ़ी थी उसमें आग लग गई । सभी बुरी तरह से जल गये । मैं भी कई जगह से लग गई । समीर ना जाने किस कारण से पाक बचे रहे । मुझे वहीं पाकिस्तान के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया । समीर भी मेरे साथ ही था । वहां पर मुझे करीब छह महीने लगे ठीक होने में । उसके बाद अस्पताल से बाहर आई । अब मेरे पास कोई सहारा भी नही था, और ना ही कोई रूपया-धैली । वो तो वहां पर उसी अस्पताल में एक हिन्दू डॉक्टर था । जब उसे पता चला कि मैं भारत से आई हूं तो उसने मेरी अच्छे से देखभाल की, और पूरा खर्चा अपने आप उठाया । उसने मुझे कुछ रूपये भी देने चाहे, मगर मैंने उसे मना कर दिया । मैंने बाहर आने पर कुछ काम-धंधा करने की सोची, मगर अंजान देष । पूरी तरह से कट्टर मुसलमान । हिन्दू के नाम से भी उन्हें घिन्न आती । भारत के नाम पर तो वो मुसलमान पर भी शक करें । वहां पर काम करना भी कठिन हो गया । ऊपर से मैं औरत, मगर किसी तरह से मेहनत मजदूरी की, बर्तन मांजे, सडक़ों पर सोई और पैसे इकट्ठे किये । तुम्हारी याद सताती तो चुपके से रो लेती । समीर को जरा-सा भी आभास नही होने दिया । समीर भी मजदूरी करने लगा । दोनों की मजदूरी से घर के खर्च के साथ-साथ हम कुछ पैसा भी बचाने लगे । जब हमारे पास इतना पैसा हो गया कि-हम भारत वापिस पहुंच जायें तो हमने फिर से एक बार भारत के लिए टिकट बनवाया और यहां के लिए सफर पर निकल पड़े । अब तक तो दंगे-फसाद को हुए 14-15 साल हो चुके थे । सो कुछ तो अमन-षांति हो ही चुकी थी । वहां से अमृतसर के लिए रवाना हुए । रेल चल पड़ी । मुझे अब भी डर था कि-कहीं कुछ गड़बड़ ना हो जाए, मगर जैसे ही रेल पाकिस्तान से भारत के अन्दर दाखिल हुई मेरी सारी परेषानियां दूर हो गई । अब मुझे अमृतसर का रेलवे स्टेषन भी कोसों दूर नजर आने लगा । मैं अमृतसर पहुचने के लिए बेताब थी । यहां पहुंचने पर उतरते ही मैंने अपने वतन की मिट्टी को चूमा । उसके बाद मैं आपके पास पहुंची । सब कुछ बदल चुका है । सबकुछ बदल चुका है, एक नही बदला है तो वो हैं आप । आज भी आप वैसे के वैसे ही हैं ।’
‘‘मेरा क्या बदलना था गुलनार, और आप भी तो नही बदली । वैसे आप के पास मेरी कौन-सी ऐसी अमानत है जो आप मुझे देना चाहती हैं ।’’
‘‘ये आप ही की तो अमानत है, आपका बेटा समीर । जिसके लिए मैं आज तक जिंदा हूं ।’’
‘‘और मैं आपके लिए गुलनार । मुझे पता था कि कभी-ना-कभी आप जरूर आयेंगी । इसलिए मैं भी आपके लिए ही जिंदा हूं ।’’
यह कहकर बलविन्द्र ने अपने बेटे समीर और गुलनार को छाती से लगा लिया फिर से एक बार तीनों की आंखों से पानी बहने लगा । और इस प्रकार से एक बार फिर दो दिलों और उनके प्यार समीर का मिलन हुआ ।

Language: Hindi
470 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
हिंदीग़ज़ल में होता है ऐसा ! +रमेशराज
हिंदीग़ज़ल में होता है ऐसा ! +रमेशराज
कवि रमेशराज
विश्व की पांचवीं बडी अर्थव्यवस्था
विश्व की पांचवीं बडी अर्थव्यवस्था
Mahender Singh
आत्मा की शांति
आत्मा की शांति
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
जन गण मन अधिनायक जय हे ! भारत भाग्य विधाता।
जन गण मन अधिनायक जय हे ! भारत भाग्य विधाता।
Neelam Sharma
★HAPPY FATHER'S DAY ★
★HAPPY FATHER'S DAY ★
★ IPS KAMAL THAKUR ★
फ़ानी
फ़ानी
Shyam Sundar Subramanian
आइसक्रीम के बहाने
आइसक्रीम के बहाने
Dr. Pradeep Kumar Sharma
2262.
2262.
Dr.Khedu Bharti
आदत न डाल
आदत न डाल
Dr fauzia Naseem shad
दीप की अभिलाषा।
दीप की अभिलाषा।
Kuldeep mishra (KD)
झील के ठहरे पानी में,
झील के ठहरे पानी में,
Satish Srijan
*** यादों का क्रंदन ***
*** यादों का क्रंदन ***
Dr Manju Saini
एक बार बोल क्यों नहीं
एक बार बोल क्यों नहीं
goutam shaw
चूड़ियाँ
चूड़ियाँ
लक्ष्मी सिंह
मेरे सपनों में आओ . मेरे प्रभु जी
मेरे सपनों में आओ . मेरे प्रभु जी
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
रूप जिसका आयतन है, नेत्र जिसका लोक है
रूप जिसका आयतन है, नेत्र जिसका लोक है
महेश चन्द्र त्रिपाठी
💐अज्ञात के प्रति-109💐
💐अज्ञात के प्रति-109💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
“See, growth isn’t this comfortable, miraculous thing. It ca
“See, growth isn’t this comfortable, miraculous thing. It ca
पूर्वार्थ
इंसान अपनी ही आदतों का गुलाम है।
इंसान अपनी ही आदतों का गुलाम है।
Sangeeta Beniwal
♤ ⛳ मातृभाषा हिन्दी हो ⛳ ♤
♤ ⛳ मातृभाषा हिन्दी हो ⛳ ♤
Surya Barman
बाप के ब्रह्मभोज की पूड़ी
बाप के ब्रह्मभोज की पूड़ी
नंदलाल सिंह 'कांतिपति'
अपूर्ण नींद और किसी भी मादक वस्तु का नशा दोनों ही शरीर को अन
अपूर्ण नींद और किसी भी मादक वस्तु का नशा दोनों ही शरीर को अन
Rj Anand Prajapati
#रोचक_तथ्य
#रोचक_तथ्य
*Author प्रणय प्रभात*
हृदय के राम
हृदय के राम
Er. Sanjay Shrivastava
दोस्ती
दोस्ती
Mukesh Kumar Sonkar
Tujhe pane ki jung me khud ko fana kr diya,
Tujhe pane ki jung me khud ko fana kr diya,
Sakshi Tripathi
बॉस की पत्नी की पुस्तक की समीक्षा (हास्य व्यंग्य)
बॉस की पत्नी की पुस्तक की समीक्षा (हास्य व्यंग्य)
Ravi Prakash
नया युग
नया युग
Anil chobisa
तू ही मेरी चॉकलेट, तू प्यार मेरा विश्वास। तुमसे ही जज्बात का हर रिश्तो का एहसास। तुझसे है हर आरजू तुझ से सारी आस।। सगीर मेरी वो धरती है मैं उसका एहसास।
तू ही मेरी चॉकलेट, तू प्यार मेरा विश्वास। तुमसे ही जज्बात का हर रिश्तो का एहसास। तुझसे है हर आरजू तुझ से सारी आस।। सगीर मेरी वो धरती है मैं उसका एहसास।
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
सितम ढाने का, हिसाब किया था हमने,
सितम ढाने का, हिसाब किया था हमने,
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
Loading...