वजूद
वजूद
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करता है इंसान ताउम्र गुरुर शोहरत पर अपनी
वक़्त औ हालात हमेशा मुस्तक़िल भी नहीं रहते
मुगालते में रहता है ताउम्र सायों के साथ का
अंधेरे में इंसान के साथ वो साये भी नहीं रहते
कम उम्र होते हैं रेत पर हमारे कदमों के निशाँ
हवा के तेज झोंके में वजूद में वे भी नहीं रहते
ख़्वाब संजोये होते हैं साहिल पर रेत के घरोंदे
आगोश में तेज लहर के महफूज़ वे भी नहीं रहते
जब भी उठता है तूफान समन्दर की मौजों का
सलामत ‘ सुधीर ‘ मजबूत साहिल भी नहीं रहते …..
—- सुधीर केवलिया