उसको उसके घर उतारूंगा मैं अकेला ही घर जाऊंगा
इस महफ़िल में तमाम चेहरे हैं,
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
जो लोग बिछड़ कर भी नहीं बिछड़ते,
बेचारे हाथी दादा (बाल कविता)
मोहब्बत का ज़माना आ गया है
“शादी के बाद- मिथिला दर्शन” ( संस्मरण )
मैं दौड़ता रहा तमाम उम्र
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
मेरी जान ही मेरी जान ले रही है
व्यंग्य कविता- "गणतंत्र समारोह।" आनंद शर्मा
Best ghazals of Shivkumar Bilagrami
मैं मित्र समझता हूं, वो भगवान समझता है।