वक्त गुजरा संवरने लगे
आधार छंद – वाचिक महालक्ष्मी
मापनी – 212 212 212
समांत – ‘ अरने ‘ , पदांत – ‘ लगे ‘ .
****गीतिका ****”
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वक्त गुजरा संवरने लगे।
वात से बात करने लगे।(१)
काल के भाल पर सलवटें,
देखकर वो सिहरने लगे।(२)
याद उनको वही बात है,
याद करके विचरने लगे।(३)
सलवटें जब पड़ीं भाल पर,
आइना देख डरने लगे।(४)
गमजदा हैं बहुत वो मगर,
चैन की सांस भरने लगे।(५)
कर न पाया सहन ये ‘अटल’,
जख्म उसके उभरने लगे।(६)
?अटल मुरादाबादी ?