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20 Jan 2019 · 1 min read

लो फिर बारिश आई

सावन का महीना,
न धूप न पसीना।
आ गई तू बरखा प्यारी,
रिमझिम रिमझिम तेरी फुहारी।
तेरे आने पर हर बार,
जाग उठती हैं यादें सारी।
वो नन्हे से दोस्त वो नन्ही सहेलियाँ,
बचपन की सारी नादान अठखेलियां।
वो पानी में छपाके,
वो छत पर नहाना।
घर वालों से छुपकर,
वो कागज की नावें बनाना
फिर भरे हुए पानी की,
होती थी खोज।
कागज की,
नावें तैराती नन्ही फौज,
पूछो न क्या आ जाती थी मौज।
उछलना कूदना,
वो छत पर नहाना।
बहते पानी को रोक कर,
तालाब बनाना।
जब तलक बारिश न रुके,
घर के अंदर न आना।
फिर पापा का चिल्लाना,
वो मम्मी का घबराना।
गीले कपड़े बदलाना, झूठमूठ कांपना हिलना
गर्म काॅफी का मिलना।
उस पर पकौड़ियों की सौगात,
क्या थे वो भी दिन रात।
क्या आया सावन का मौसम सुहाना।
याद आ गया फिर से,
बचपन का प्यारा-सा,
वो गुजरा जमाना।

—रंजना माथुर दिनांक 29/07/2017
अजमेर (राजस्थान )
(मेरी स्व रचित व मौलिक रचना)

Language: Hindi
214 Views
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