-ले डूबा ये काल
शीर्षक-ले डूबा ये काल
न जाने ये कैसा दौर आया है
कैसी ये त्रासदी हुई कि
एक के बाद एक शिकार हम
हुए जा रहे है
आज मैं तो क्या
कल तुम तो क्या
ले डूबा ये काल
मनुष्यता की तो मौत ही दिख रही हैं
चारो ओर हर दिन
कोई पास ही नही लगता कोरोना में
कैसी विकट घड़ी आयी ये
क्यो आत्मा मरी हमारी की अकेले छोड़
हम दूर खड़े नजर आ रहे हैं आज अपनो से भी
ले डूबा ये काल
दौर भी संक्रमण का है पर अपनापन
क्या जिम्मेदारी नही हम सबकी
क्या अब अकेले ही रहना सहना होगा सब
क्या काल के गाल की हम कठपुतली हैं
आखिर क्यों आज बीमार अकेले ही पड़ा
ले डूबा ये काल
अपनी मजबूरी देख खुद मर रहा है न जाने क्यो
आज मनुष्यता मर रही है या फिर हम सिर्फ अपना ही
सोच न जाने इतना ख़ौफ कि कोई साथ नही आता
आज तो मरने के वाद भी कोई साथ नही आता
न जाने क्यो ,अकेले पन से बहुत है ख़ौफ
ले डूबा ये काल
डॉ मंजु सैनी
गाजियाबाद