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14 Jan 2018 · 3 min read

लेख

मुख्य पटल
सूर्य उपासना का पर्व :- मकर सक्रांति कवि राजेश पुरोहित मकर सक्रांति को उत्तरायण,माघी,खिंचड़ी संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है। प्रतिवर्ष हम सब मकर सक्रांति मनाते है। पोष माह में जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि मे प्रवेश करते हैं इसीलिए इसे मकर सक्रांति कहते हैं। यह सूर्य उपासना,सूर्य पूजा का दिन है। इस दिन सूर्य को अर्ध्य देना चाहिए। सूर्य नमस्कार करना चाहिए। सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर बढ़ता है। ग्रीष्म ऋतु का आगमन हो जाता है। सूर्य के प्रकाश में गर्मी बढ़ जाती है। तीव्रता बढ़ने से मनुष्यों में नव चेतना आती है।कार्यशक्ति का विस्तार होता है। खेतों में सरसों लहलहाने लग जाती है।खरीफ की फसलें कट चुकी होती है।पीली सरसों के खेत मन मोह लेते हैं। फसलों के आगमन की खुशी का पर्व है यह। सुख और समृद्धि का दिन है मकर सक्रांति। सर्दियों में वातावरण का तापक्रम बहुत कम रहता है। पाला गिरता है। पत्तियों पर पानी की बूंदें जमा हो जाती है। कोहरा,चारों ओर ओस गिरती है। कोहरे के कारण अंधेरा हो जाता है। सरदियों में कई रोग हो जाते हैं। बीमारियां जल्दी हो जाती है। इसलिए तिल व गुड़ जो शरीर को गर्मी प्रदान करते हैं इनके व्यंजन बनाये जाते है। तिल गुड़ के लड्डू,तिलपपड़ी गजक आदि बनाये जाते हैं। बसंत का आगमन होता है मकर सक्रांति से। प्रकृति में महक ही महक होती है फूलों की। सुगंधित वातावरण। अंधकार का नाश प्रकाश के स्वागत का पर्व है मकर सक्रांति। पूर्ण आस्था व विश्वास से मकर सक्रांति के दिन दान करना चाहिए। तिल का दान करने से पुण्य मिलता है। तिल के तेल से बने व्यंजन बनाकर सेवन करना चाहिए। भगवान सूर्यदेव की पूजा उपासना करते श्वेतार्क, रक्त रंग के पुष्प काम मे लेने चाहिए। इस दिन महादेव शंकर ने भगवान विष्णु को आत्मज्ञान भी प्रदान किया था। माँ गंगा भी मकर सक्रांति के दिन ही सागर में मिली थी।माघ मेले का प्रथम स्नान इसी पर्व से माना जाता है। अंतिम स्नान महाशिवरात्रि पर होता है।महाभारत में वर्णन आता है कि पितामह भीष्म ने अपने शरीर का त्याग भी मकर संक्रांति के दिन ही किया था। हरिद्वार,काशी,गंगासागर जैसे पवित्र तीर्थ स्थानों पर लोग स्नान कर मकर संक्रांति पर धन्य हो जाते हैं। सूर्य के धनु राशि से मकर राशि यानी एक राशि से दूसरी राशि मे जाने की विस्थापन क्रिया को सक्रांति कहते हैं । और मकर में प्रवेश करने के कारण मकर सक्रांति कहलाती है। सूर्य दिशा बदल देता है दक्षिणायन सर उत्तरायण की ओर हो गया। उत्तर की ओर सूरज के बढ़ने से दिन बढ़े और रातें छोटी होने लगेगी। हमें सर्दियों में कुछ घण्टे सूर्य की धूप में बिताना चाहिए। विटामिन डी के साथ ही हड्डियों को मजबूत बनाने के लिए ये जरूरी है।धूप में बैठने से शरीर स्वस्थ रहता है। सर्दी की धूप शरीर के लिए स्वास्थ्यवर्धक होती है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान का महत्व है।स्नान के बाद दान पूजा तप जप का महत्व है।इस दिन गंगासागर में विशाल मेला लगता है।इस दिन दान देने से पुण्य लाख गुणा बढ़ जाता है। भारत व नेपाल में यह पर्व फसलों के आगमन की खुशी का पर्व होता है । अन्नदाताओं के चेहरे पर खुशी आ जाती है। नव उल्लास नव उमंग का पर्व है मकर सक्रांति।दक्षिण भारत मे इसे पोंगल के नाम से मनाया जाता है। उतर भारत मे लोहड़ी पर्व इसी दिन मनाते है।मध्य भारत मे सक्रांति के नाम से मनाते हैं। भारत के गुजरात राज्य में इसे उत्तरायण कहते हैं।उत्तराखंड में उत्तरायणी भी कहते हैं। इस दिन देव धरती पर अवतरित भी होते हैं।इसीलिए मनुष्य इस दिन पुण्य दान धार्मिक अनुष्ठान जप इत्यादि करते हैं। गो माता को चारा डालना। गो माता की पूजा करना। गोशालाओं में जाकर सेवा करने जैसे पुण्य कर्म करते हैं। मकर सक्रांति के दिनों में बच्चे पतंग उड़ाते हैं। कुछ समय धूप में बिताते हैं। हँसी खुशी का यह पर्व मिलकर मानाये। खूब खाएं। जमकर पतंगें उड़ाएं।गीत संगीत में खो जाए। वो काटा से वातावरण गुजा दे। – कवि राजेश पुरोहित 98,पुरोहित कुटी, श्री राम कॉलोनी भवानीमंडी जिला-झालावाड़ राजस्थान पिन-326502

Language: Hindi
Tag: लेख
696 Views
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